अंग्रेजी में एक कहावत है 'लाफ एंड द वर्ल्ड लाफ विद यू, वीप एंड यू वीप अलोन'। जी हां, रोने वाले का जीवन में कोई साथ नहीं और हंसने वाले को देखकर अनजान लोग भी बरबस ही उसकी ओर आकर्षित हो उठते हैं। हंसते-मुस्कुराते चेहरों को सब देखना पसंद करते हैं लेकिन मुंह लटकाये उदास झल्लाया हुआ चेहरा किस को अपनी ओर आकर्षित नहीं करता। फोटो खींचने के पहले आपसे 'चीज' इसीलिए बुलवाया जाता कि आपकी दंतपंक्ति झलकने लगे और मुस्कान से आपका चेहरा खिल उठे तथा आपको फोटो एक खुशनुमा यादगार बन जाए।
ईश्वर का वरदान
प्रसन्नता हमें ईश्वर से वरदान के रूप में मिली है, इसकी महत्ता हमें समझानी चाहिए। कहते हैं 'एक तंदरूस्ती हजार नियामत' तंदुरूस्ती का राज प्रसन्न रहना भी है। अधिकतर बीमारियां मन की उपज या शरीर और मन की मिली-जुली 'साइकोसमेटिक' देना होती है जिसे प्रसन्न रहकर आसानी से दूर किया जा सकता है।
यह सच है कि हमारे सुख और दुख बाहरी कम, भीतरी ज्यादा होते हैं यानी हमारा मन ही हमार सुख-दुख का आधार होता है। चित्त प्रसन्न रखने से दुख स्वत: ही दूर हो जाते हैं। प्रसन्नचित इंसान की बुध्दि भी अपनी पूरी क्षमता से कार्य करती है। दुखी मन होने पर सोचने समझने की बुध्दि भी क्षीण हो जाती है। भगवान कृष्ण ने भी गीता में कुछ इसी तरह की बात कही है। खुलकर ठहाका लगाने से दुख के घने बादल भी छंट जाते हैं, तनाव दूर हो जाता है। जिंदगी उसे प्यार लगने लगी है। निराश जीवन में आशा का संचार होने लगता है।
जीवन में हर इंसान को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासकर आज की भागदौड़, आपाधापी वाली जिंदगी में छोटे-बड़े से लेकर हर कोई तनावों से घिरा है। न केवल आज की समस्या बल्कि आने वाले कल की समस्या और असुरक्षा भी इंसान का चैन हर लेती है संभावित असंभावित सब तरह की समस्याएं मिलकर इंसान का जीना दूभर कर देती है। नतीजा होता है चेहरे पर पड़ती चिंता की रेखाएं और असमय पड़ती झुर्रियां।
कहा भी गया है 'चिंता चिता समान' इस अग्नि में इंसान धीमे-धीमे सुलगता रहता है। नतीजतन उसे कई तरह के रोग लग जाते हैं। उच्च रक्त चाप दिल की बीमारी, मस्तिष्क के विकार इत्यादि। यही नहीं, चमड़ी के रोग तथा स्त्रियों में कुछ स्त्री रोग का कारण भी चिंता ही है। यह चिन्ता आधुनिक जमाने, आज के रहन सहन और सभ्यता की देन है। आज के भौतिक युग में पैसा ही हमारा भगवान बन गया है किस तरह ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जाए, इसी निन्यानवे के फेर में हम जीवन की अमूल्य निधि 'हंसी' से हाथ धो बैठे हैं। आज सुख, संतोष, आनन्द इत्यादि जैसे ख्वाब की बातें बनकर रह गई हैं। अगर हम खुलकर हंस नहीं सकते, हमारी हंसी गायव हो गई है तो उस पैसे के ढेर का क्या लाभ, जिसकी हमें इतनी कीमत चुकानी पड़ी है।
मिसेज राव जब शादी होकर नई-नई हमारी कालोनी में आई थी तो अपने हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के कारण बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गई। हर कोई उनसे दोस्ती करने को लालायित रहता है हर वक्त उनके घर मिलन जूलने वालों का तांता लगा रहता। धीरे-धीरे जब उनकी गृहस्थी ं बच्चे आए, कार्यभार तथा जिम्मेदारियां बड़ी तो वह गमगीन और चिड़चिड़ी सी रहने लगी। फिर एक साल उनके पति का प्रमोशन भी रूक गया। उन्होंने भी प्रमोशन न होने की बात को इतना महत्व दिया कि हर समय सोच में डूब रहने लगे। परिणामस्वरूप उन्हें उच्च रक्त चाप और हल्का सा दिल का दौरा भी पड़ गया। मिसेज राव अब पूरी तरह बदल चुकी थी। घिसे-पिटे रिकार्ड की तरह अपने घर के दुखड़े हर समय रोते रहने की उनकी आदत बन चुकी थी। आखिर कोई कहां तक उनके दुखड़े सुनता, सब लोग उनसे कन्नी काटने लगे। अब कोई उनके पास पांच मिनट भी नहीं बैठना चाहता था। पीठ पीछे सब कहते 'अरे! उसके पास बैठकर कौन अपना भेजा खराब करें।' यहा तक कि उनकी मेहरी भी जल्दी-जल्दी काम निपटाकर भागना चाहती क्योंकि जब और कोई नहीं सुनता तो वे उसे ही बिठाये रखती और अपने दिल की भड़ास निकालना चाहती।
स्वास्थ्य के लिए हितकर
दर असल यह एक दत की बात है, जैसी भी इंसान डाल ले। कई लोगों को हमेशा रोने के लिए एक कंधा चाहिए, वे यह भी नहीं देखते कि जिसके सामने हम आपना रोना रो रहे हैं, वो कितना हमारा अपना है। हमारा भला चाहने वाला है या सिर्फ हमारे पीछे हमारी हंसी ही उड़ाना जानता है। यदि आप उपरोक्त श्रेणी के लोगों मे नहीं आना चाहते, ऐसा नहीं बनना चाहते कि जिसे देखते ही उबने के डर से लोग किनारा करना चाहें तो जरूरी है कि आप शुरू से ही अपना स्वभाव हास्य-विनोदपूर्ण एवं आशावादी बनाएं। ऐसे इंसान के पास लोग गुड़ पर मक्खी की तरह मंडराएंगे। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रसन्नता निहायत जरूरी है। एक प्रसन्नचित व्यक्ति हर बात में उजला पत्र ही देखेगा तथा उसका व्यवहार सकारात्मक ही होगा। ऐसा व्यक्ति उत्साह से भरपुर जीवन में पराजय की कल्पना तक नहीं करता।
उसका उत्साह उमंग एक जरबरदस्त भीतरी ताकत बन जाता है, जो उसे हर कार्य में सफल होने के लिए 'मोटीवेट' करता है। कहते हैं प्रसन्न रहने में ही चिंराय होने का राज छुपा है। हंसी इंसान के लिए सबसे अच्छी दवा है। अंग्रेजी मे कहावत है 'लाफ्टर इज द बेस्ट मेडिसन' यह दवा मुफ्त मिलती है हर समय हर जगह उपलब्ध है। मोटे लोग अक्सर खुशमिजाज और पतले-दुबले चिड़चिड़े व तुनकमिजाज पाए जाते हैं।
शायद मोटे लोगों की सेहत का राज उनका खुशमिजाज रहना, हंसना और हंसाना ही है। खुलकर हंसने से हमारे फेफड़े ही नहीं बल्कि शरीर की छोटी से छोटी धमनी और रक्तवाहिनी भी प्रभावित होती है। उनमें लहर उठती है, खून का संचार बढ़ता है। इस तरह हम देखते हैं कि हंसी एक अच्छा व्यायाम भी हैं।
डा. बैजामिन लिखते है, 'स्वास्थ्य की दृष्टि से हंसने की आदत डालना बड़ा महत्वपूर्ण है।'
कुछ विद्वान डाक्टरों का कथन है कि हंसी की क्रिया के पश्चात शरीर को वैसी ही ताजगी और स्फूर्ति प्राप्त होती है, जैसी गहरी नींद सोन से।
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