Sunday, May 22, 2011

हंसना हंसाना ही जिन्दगी है

आज की जिन्दगी में सिवाय भाग दौड़ के हैं ही क्या? जिन्दगी की इस भागदौड़ में इंसान के लिए सुख यौवन और स्वास्थ्य कल्पना ही बन कर रह जाती है। इस बेढंगी जिन्दगी की जिंदादिल जिंदगी बनाने के एक ही सहज उपाय है, हंसना-हंसाना, मौज मनाना। अगर चेहरे पर हंसी, दिल में खुशी, हो तो स्वास्थ्य पर भागदौड़ का ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। हंसने-हंसाने का यह मतलब नहीं कि दिन रात इंसान हंसता और हंसाता ही रहे। इंसान अगर दिन में तीन चार बार खुश होकर जोर से खिलखिला कर हंस ले तो उसके सारे कष्ट, परेशानियां व रोग दूर हो जाते हैं। खिलखिला कर हंसने फेफड़ों पर एक के बाद एक तीन चार झटके लगते हैं। प्रत्येक झटके के साथ रक्त वाहिनी नलिकाओं का रक्त हृदय तक पहुंचता है तथा रक्त का संचार बढ़ता ही जाता है जिससे फेफड़ों में स्वच्छ वायु पहुंचती है और दूषित वायु दूर होती है। साथ ही साथ भोजन पचता भी है, जिससे लोगों को पेट संबंधी कोई रोग नहीं हो पाता। एक निराश व्यक्ति जो कभी हंसता ही नहीं है, अगर उसे देखा जाये तो पता चलता है कि उसे किसी भयंकर रोग ने घेर लिया है या उसकी आयु सीमित है जिस तरह जिंदगी जीने के लिए अच्छी वायु और अच्छा वातावरण का होना जरूरी है ठीक उसी तरह जिंदगी के सच्चे मजे के लिए हंसना जरूरी है। आजकल तो डाक्टर रोगी को हंसा-हंसा कर ठीक कर देते हैं। निराश व्यक्ति हंसता नहीं है जिससे उसके अन्दर का विकार दूर हो नहीं रहता, मन प्रसन्न होता और हृदय का रक्तचाप बढ़ जाता है। इसकी तुलना में हंसने वाला व्यक्ति स्वस्थ और रोगहीन रहता है। डाक्टरों का कहना है कि हंसना एक उत्तम व्यायाम है जिससे मस्तिष्क में प्रचुर मात्रा से रक्त संचार होता है, स्मरण शक्ति बढ़ती है और छोटे बड़े रोग छू मंतर हो जाते हैं। इसलिए यौवन को तरोताजा बनाये रखने के लिए जिन्दगी का सच्चा लेने के लिए स्वास्थ्य उत्तम रखने के लिए और पतझड़ सी जिन्दगी में हरियाली लाने के लिए हंसना बहुत जरूरी है। तो आइये हम आज से ही भागदौड़ की जिन्दगी की रफ्तार बढ़ायें क्योंकि अर्थयुग में इसका काफी महत्व है पर एक मंत्र याद कर लें कर कि हंसना हंसाना ही जिन्दगी है। इसे जानने से नहीं, अपनाने से होगा। अत: खूब हंसिए और जिन्दगी को जिंदा दिल बनाये रखिए।

Saturday, May 7, 2011

भावनाएं भी डालती हैं स्वास्थ्य पर प्रभाव

आशावादी इंसान दु:ख-सुख, खुशी-गम के दायरों में रहते हुए अपने आपको स्वस्थ रखते हैं। उनके विचार में भगवान ने जीवन जीने के लिए दिया है। उस जीवन का भरपूर आनन्द उठाने के लिए कुछ समस्याओं का सामना तो करना ही पड़ता है। निराशावादी इसे अलग तरीके से सोचते हैं। थोड़े से दु:ख आने पर वे महसूस करते हैं कि सारे दु:ख और गम मेरे लिए ही हैं। इस प्रकार के व्यक्ति अप्रसन्न और खिन्न रहने पर अक्सर बीमार पड़ जाते हैं। भावनाएं स्वास्थ्य पर प्रतिकूल और अनुकूल प्रभाव डालती है। अच्छी भावनाओं के होते मन प्रफुल्लित रहता है, बुरी भावनाओं के होते हुए मन उदास रहता है। अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए भावनाओं पर नियंत्रण रखें। दूसरों से नाराज होना, उन पर गुस्सा करना,र् ईष्या करना, दूसरों की गलतियां चुनते रहना, मन की बात मन में रखकर कुढ़ते रहना, दूसरों की निन्दा करना, बुराई करना और अपनी आलोचना सुनकर तिलमिलाना, ये सब बातें हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है। शुरू-शुरू में अपने अंदर ऐसे भाव पैदा करने मुश्किल हैं परन्तु धीरे-धीरे भावनाओं पर काबू पाया जा सकता है। कभी-कभी किसी बात पर क्रोध आए तो घर से बाहर टहलने चले जाना चाहिए या फिर अपने को किसी काम में व्यस्त कर लें। थोड़े समय बाद क्रोध दूर हो जायेगा। कोई आपकी गलती निकालता है या निंदा करता है तो उस बात को गंभीरता से न लेते हुए अनदेखा कर दें। कभी परिवार में या मित्रों से किसी बात पर मन-मुटाव या गलतफहमी हो जाये तो खुलकर बात करने से मन हल्का हो जाता है।