हमारा जीवन आध्यात्मिक कैसे हो? हम अध्यात्म की ओर अग्रसर कैसे हों? ऐसे प्रश्न अक्सर किये जाते हैं। इनका उत्तर जानने से पूर्व हमें अध्यात्म क्या है, इसे जानना होगा। अध्यात्म यानी आत्मा का ज्ञान, अपने निज स्वरूप का ज्ञान, जिसे आत्मबोध भी कहते हैं। आत्मज्ञान होते ही हमें अमृतत्व की प्राप्ति हो सकती है।
प्राचीन ऋषियों ने इसको जाना था। उन्होंने आत्मबोध के साथ-साथ साधना एवं तपस्या द्वारा अपने जीवन में परमात्मा से साक्षात्कार भी किया था। हमारा मन बड़ा चंचल है। इसमें विचारों का प्रवाह होता रहता है।
इच्छाओं की पूर्ति कभी नहीं होती। एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी उत्पन्न हो जाती है और यह क्रम निरंतर चलता रहता है। कहते हैं मन तो मन ही है। यह किसी के वश में नहीं रहता। इसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती।
मन का दूसरा नाम विचार है। विचारों का प्रवाह है मन जैसे जल का प्रचंड प्रवाह बहता है तो वह इधर उधर बहकर बिना किसी उपयोग के व्यर्थ चला जाता है वैसे ही मस्तिष्क में आ रहे विचारों का प्रवाह भी व्यर्थ ही चला जाता है।
मन की गति को कोई नहीं जान सकता। एक क्षण में कभी मन हजारों मील दूर के स्थान पर पहुंच जाता है तो कभी हजारों वर्षों पूर्व के इतिहास में। मन की शक्ति असीमित है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा कि अगर हम अपने मन पर विजय प्राप्त कर सकें तो सारे विश्व को जीत सकते हैं।
आत्मज्ञान तथा आत्मबोध से ही मन को नियमित किया जा सकता है। हमारे मन में शुभ विचार आवें, इसके लिये हमें सद्पुरुषों के साथ सत्संग, सद्ग्रंथों का अध्ययन, मनन, चिंतन करना चाहिये।
मन शुध्द दूध की तरह है। बाल्यावस्था में हमारा मन इसी तरह शुध्द व पवित्र होता है किन्तु दूध में पानी मिलाया जावे तो दूध पतला हो जायेगा, दूध में गंदा पानी मिलाया जायेगा तो दूध गंदा हो जायेगा किन्तु इस दूध को गरम करके दही बनाकर मथा जावे तो इससे प्राप्त नवनीत या मक्खन पानी से प्रभावित नहीं होगा। नवनीत को पानी में डाल दिया जाये तो पानी पर तैरात रहेगा।
इसी तरह दैवी विचार या सद्विचारों को अपनाने से अर्थात् उनका श्रवण, मनन, चिंतन व अंगीकार करने से हमारा मन निर्मल, स्वच्छ व शांत हो जायेगा। ये सद्विचार हमारे जीवन को ऊंचाई पर ले जायेंगे।
यदि आप भी आध्यात्मिक ज्ञान की ओर अग्रसर होना चाहते हैं तो अपने मन को सद्कार्यों की ओर लगावें। प्रतिदिन सद्साहित्य का स्वाध्याय करें। मन से अहं वर् ईष्या को दूर कर सबके प्रति स्ेह व प्रेम की भावना रखें।
छोटी-छोटी बांतों पर क्रोध प्रकट करने से मन में अशांति उत्पन्न होती है जिस व्यक्ति में अशांति, अहं तथा असंतोष है उसे परमानंद नहीं प्राप्त हो सकता है। हर स्थिति में मन निर्मल एवं प्रसन्न रहे, यही आध्यात्मिक ज्ञान है। इसके लिये आत्म सुधार, आत्म निर्माण तथा आत्मविकास की यात्रा जारी रखिये।
No comments:
Post a Comment