यह तो सभी लोग जानते हैं कि हंसना सेहत के लिए लाभदायक होता है लेकिन बहुत ही कम लोगों को मालूम है कि सेहत के लिए रोना भी आवश्यक होता है। गम या मातम के क्षणों में न रोया जाए तो छाती और कलेजा फटने लगता है। ऐसे क्षणों में रोने से दिल हल्का हो जाता है। यदि बच्चा जन्म लेते ही न रोए तो चिंता का विषय बन जाता है। न रोने से उसकी जान जा सकती है, इसलिए उसे रुलाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाता है। किसी की मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी या पुत्र वगैरह रोएं नहीं और गुमसुम होकर बैठ जाएं तो सबको चिंता होने लगती है कि कहीं ये पागल न हो जाए। शोकग्रस्त व्यक्ति के नहीं रोने से उसके दिमाग पर इतना दबाव पड़ता है कि वह पागल भी हो सकता है। शायद इसीलिए किसी की मृत्यु होने पर या मातम के क्षणों में परिवार की महिलाएं जार-बेजार रोती हैं ताकि दिल पर पड़े गम का भार हल्का हो जाए और वे अपने को हल्का महसूस करें।
गम या मातम के क्षणों में आंसू को नहीं रोकना चाहिए क्योंकि ऐसे क्षणों में आंसू का बहना सेहत के लिए बहुत आवश्यक होता है। आंसुओं के बहने से हृदय की पीड़ा और गदन की अकड़न दूर होती है। रोने से आंसू के साथ शरीर से अनेकों विजातीय पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। आंखों में घुसे धूलकण निकल आते हैं जिससे आंखें रोगग्रस्त नहीं होती।
बच्चे के रोने से उसे प्राणवायु मिलती है। आंसू के बहने से व्यक्ति आसानी से तनावमुक्त हो जाता है। आंसुओं को रोकने से दिल और दिमाग पर बोझ पड़ता है जिसके दबाव से दिल और दिमाग फटने लगते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाएं कम तनावग्रस्त होती हैं तथा कभी तनावग्रस्त होते ही उनके आंसू निकल आते हैं। इसलिए महिलाएं हृदय रोगों का शिकार कम होती हैं और उनकी औसत आयु भी पुरुषों की तुलना में अधिक होती है।
रूलाई का सारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है। रोने से दिल का दबाव दूर होकर दिल हल्का हो जाता है। कभी-कभी खुशी के क्षणों में भी आंसू निकल आते हैं जिन्हें खुशी के आंसू कहा जाता है। जब दुल्हन की विदाई होती है और वह मां-बाप, भाई व अन्य लोगों से गले मिलती है तो सबके आंसू निकल आते हैं जो खुशी के आंसू होते हैं। विदाई के गीत भी बड़े मार्मिक होते हैं जिन्हें सुनकर बरबस आंसू निकल आते हैं। प्राचीन काल में रूदाली (गम या मातम के क्षणों में पैसे लेकर रोने वाली महिलाएं) होती थीं जिन्हें ऐसे क्षणों पर बड़े लोग रोने के लिए बुलाते थे। आज भी कई धनाढ्य परिवारों में गम के क्षणों में रोने के लिए उन्हें बुलाया जाता है ताकि उनकी रूलाई सुनकर अन्य संबंधी भी रोएं। बुजुर्गों का कहना है कि हंसोगे तो जग हंसेगा लेकिन रोने वाले के साथ कोई नहीं रोएगा। रोने में कोई साथ दे या न दे लेकिन जिसे गम या चोट लगेगी वह तो रोएगा ही। किसी के साथ देने का इंतजार वह थोड़े ही करेगा?
No comments:
Post a Comment