Thursday, September 16, 2010
तनाव का आत्मीय इलाज है म्यूजिक थैरपी
क्या तनाव बढ़ता जा रहा है? अगर दवाओं के बिना कुछ राहत चाहते हैं तो कुछ संगीत सुनने का प्रयास कीजिए। अपनी जड़ों पर वापस लौटना इतना कूल कभी नहीं था। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि तनाव से मुक्ति पाने के लिए बहुत लोग गैर-परम्परागत उपचारों का सहारा ले रहे हैं जैसे म्यूजिक थैरपी।तनाव दूर करने की सूची पर शायद संगीत को पहली वरीयता प्राप्त हो। लेकिन इस तथ्य को कम लोग जानते हैं कि इस विज्ञान आधारित थैरपी का वास्तव में बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। चाइल्ड बर्थ के दौरान दर्द से राहत देने से सेन्ट्रल नर्वस डिसआर्डर को ठीक करने तक सा रे गा मा का प्रयोग किया जाता है। शोधों से मालूम हुआ है कि विभिन्न साइक्रोमेटिक और सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम बीमारियों के उपचार में संगीत का इस्तेमाल किया जा सकता है। विशेषज्ञों ने संगीत का प्रयोग ट्रेन्कुलाइजर के रूप में किया है ताकि सिडेटिव्स का प्रयोग कम या पूरी तरह से समाप्त किया जा सके और खासकर ओटिज्म क्लीनिकल डिप्रेशन, ब्लड प्रेशर और हृदय रोग की स्थितियों में। गंभीर बीमारियों के अलावा म्यूजिक थैरपी कम्युनिकेशन क्षमता और आत्मविश्वास विकसित करने में भी मदद करती है, खासकर बच्चों में। कुछ विशेषज्ञों ने ध्यान और शास्त्रीय संगीत का गठबंधन बनाया है ताकि तन और आत्मा की बुलंदियों पर पहुंचा जा सके। इसे सुचारू ढंग से प्रयोग करने के लिए भारत में अब तक 8000 छात्र इसकी ट्रेनिंग ले चुके हैं। प्राचीन सोच यह है कि खुश रहने के लिए मानव जीवन के सभी सात चक्र ट्यून्ड रहें। यह चक्र हैं- महत्वाकांक्षा, उत्तेजना, प्रेम, अच्छे संबंध, उत्साह, फोकस और अध्यात्म। ध्यान व संगीत थैरपी कार्यक्रम में इन्हीं चक्रों को ट्यून करना सिखाया जाता है। दिल्ली की फरजाना समीन बताती हैं, ‘म्युजिक थैरपी सत्र के शुरूआत में मेरा ऑटिस्टिक बेटा बिल्कुल सहयोग नहीं करता था। लेकिन उसके टीचर ने उसकी मदद की और अब उसका आत्मविश्वास काफी हद तक बढ़ गया है। वह संगीत को तनाव दूर करने के लिए इस्तेमाल करता है। आज वह इतना इन्टरैक्टिव हो गया है कि उसने बिना घबराहट व झिझक के स्टेज पर भी परफार्म करना शुरू कर दिया है।’ ओक्युपेशनल थैरपिस्ट और आटिस्टिक बच्चों के लिए विशेष स्कूल की संस्थापिका रिशा घूलप को विश्वास हो गया है कि जो आटिस्टिक बच्चे म्युजिक थैरपी से गुजरते हैं वह अधिक सतर्क और इंटरैक्टिव हो जाते हैं उन बच्चों की तुलना में जो म्युजिक थैरपी नहीं करते।
Sunday, September 12, 2010
मोह के बंधन मत बढ़ाइये
विश्व की विभिन्न वस्तुओं का मोह आत्मा को कैद कर लेता है। मनुष्य की छोटी-छोटी वस्तुओं में मनोवृत्ति संलग्न बनी रहती है। जितना अधिक मोह, उतना ही अधिक बंधन, उतनी ही अधिक मानसिक अशांति। विश्व की चमक-दमक में जितना विलीन होंगे, उतना ही आत्मबल गुप्त होता जाएगा।
एक सन्त विश्व से वैराग्य लेकर, संसार की सम्पूर्ण माया-ममता का बंधन तोड़कर, संन्यास लेकर वन में तप हेतु चले गए। विश्व का परित्याग कर निरन्तर साधना में लीन हो गए। साधना करते-करते अनेकानेक वर्ष बीत गए। मन पर संयम तथा उन्नत वृत्तियों पर शासन करने लगे। एक दिन क्या देखते हैं कि उनके आश्रम में दो सौ फुट की दूरी पर जानवरों का झुण्ड हरी घास चरने आ रहा है। इतने में एक भेड़िया आक्रमण करके झुण्ड से एक बकरी ले भागा। उस बकरी का बच्चा छूट गया। सन्त महोदय को दया आ गई, वे उस बकरी के बच्चे को उठा लाए। पालने लगे, उस बच्चे हेतु जल और हरी घास की व्यवस्था करने लगे। दो महीने में ही मेमने का स्वास्थ्य बनने लगा। मोह-ममता गहरी होने लगी। उस बकरी के बच्चे की छाया हेतु एक झोपड़ी का सन्त ने निर्माण किया। घास आदि की व्यवस्था की। तात्पर्य यह कि जिस विश्व को छोड़कर सन्तजी घर से चले गए थे मोहवश फिर उसी भवसागर में फंस गए। उनकी आत्मा बकरी के बच्चे में तल्लीन हो गई।
व्यक्ति का मोह घर, वैभव-विलास, पुत्र-पुत्री तथा छोटी-छोटी अनेक वस्तुओं के प्रति होता है। यही मोहवश है। जब उनकी किसी चीज को किसी तरह की हानि मिलती है या किसी स्वार्थ पर चोट आती है, तब आत्मा को कष्ट मिलता है। मन की शान्ति भंग हो जाती है। व्यक्ति भीतर ही भीतर कष्ट का अनुभव करने लगता है। पुत्र का मोह व्यक्ति की आत्मा का सबसे बड़ा बंधन है। परिवार में किसी को कुछ हो जाये तो आपका मन दु:ख से भर जाता है। पुत्र से आप कुछ आशा करते हैं, पूरी न होने पर आपको पीड़ा होती है।
आपके पास एक घर है परन्तु आप एक फ्लैट और खरीदना चाहते हैं। यही नया बंधन है। आवश्यकता से अधिक कुछ भी रखना, विभिन्न प्रकार के शौक, धन की तृष्णा, फैशनपरस्ती, भोग-विलास की अतृप्त कामना ही आत्मा के बंधन हैं। इनमें से प्रत्येक वस्तु में बंधकर मनुष्य फड़फड़ाया करता है। आपको बांधे हुए हैं। जब कभी आपका मन शान्ति का लाभ उठाना चाहते हैं, तब इनमें से कोई भोग-पदार्थ आपको खींचकर पुन: पहले वाली स्थिति में ला पटकता है।
उदाहरण के लिए, आप घर पर एक कुत्ता पाल लेते हैं। एक प्राणी का परिवार में आगमन आत्मा पर एक नवीन बंधन होगा। उसके स्वास्थ्य, भोजन, आवास, हर्ष-विषाद की अनेक चिन्ताएं आपको जकड़ लेंगी। परिवार में पला हुआ प्रत्येक जीव आपकी आत्मा को जकड़ कर रखता है। आपके परिवार का प्रत्येक सदस्य आपसे एक प्राकर से बंधा है। यही ऋण-बंधन है। विलास की वस्तुएं, जिनके एक दिन न होने से आप दु:ख का अनुभव करते हैं, आपका बंधन है। मादक द्रव्य जैसे शराब सुरा, तम्बाकू, सिगरेट, पान-मसाला, काफी-चाय आदि वस्तुएं, जिनसे आप बंधे हैं, आपको आध्यात्मिक मार्ग पर बढ़ने नहीं देते। आपका प्रत्येक सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक उत्तरदायित्व आप पर बंधन स्वरूप होकर आता है। यदि आपको बढ़िया परिधान व कीमती कपड़े पहनने का व्यसन है तो इनकी अनुपलब्धता में आप अपने मन की शान्ति भंग कर लेंगे। यदि किसी दिन सामान्य भोजन प्राप्त हुआ और आप नाक-भौं सिकोड़ने लगे तो यह भी मन की शान्ति को भंग करने वाला है। दो-चार दिन के लिए भी आपको साधारण घर, कुटी या धर्मशाला में रहना पड़े तो आप बिगड़ ही उठते हैं।
यह सब इसलिए है कि आपने विविध रूपों से अपने आपको कृत्रिमताओं से बांध लिया है। आत्मतत्व को खो दिया है। आप आवश्यकता से ज्यादा सांसारिक वस्तुओं में लिप्त हैं। अपनी आत्मा के प्रति ईमानदारी से व्यवहार नहीं करते हैं। आपका सम्बन्ध विश्व की इन अस्थिर एवं क्षणिक सुख देने वाली वस्तुओं से नहीं हो सकता। आप उत्तम वस्त्रों में अपने जीवन के निरपेक्ष सत्य को नहीं भूल सकते। आप स्वतंत्र, संसार के क्षुद्र बंधनों से उन्मुक्त आत्मा हैं। आप वस्त्र नहीं, आभूषण नहीं, संसार के भोग-विलास नहीं, प्रत्युत सत्-चित्-आनन्द स्वरूप आत्मा हैं। आपका निकट संबंध आदि स्रोत परम-परमात्मा से है। उसी सत्ता में विलीन होने से आत्मसंतोष प्राप्त होता है। आपके जो संबंध अपने संसार में बंधे हुए हैं, वे दु:ख स्वरूप हैं। मृत्यु से जो आपको भय प्रतीत होता है, उसका कारण यही सांसारिक मोह है। माता, पिता, पुत्र, पत्नी आदि कोई भी संबंधी आपके साथ हमेशा नहीं रह सकता। यह बाहरी बंधन है। सबसे उत्तम मार्ग तो यह है कि इनमें रहते हुए भी सदा अपने आपको अलग समझा जाए। जैसे कमल जल में रहते हुए भी सदा जल से पृथक रहता है, उसी प्रकार सांसारिक बंधनों में रहते हुए, गृहस्थ केर् कत्तव्यों का पालन करते हुए भी सदैव अपने आपको विश्व से पृथक देखिए।
एक सन्त विश्व से वैराग्य लेकर, संसार की सम्पूर्ण माया-ममता का बंधन तोड़कर, संन्यास लेकर वन में तप हेतु चले गए। विश्व का परित्याग कर निरन्तर साधना में लीन हो गए। साधना करते-करते अनेकानेक वर्ष बीत गए। मन पर संयम तथा उन्नत वृत्तियों पर शासन करने लगे। एक दिन क्या देखते हैं कि उनके आश्रम में दो सौ फुट की दूरी पर जानवरों का झुण्ड हरी घास चरने आ रहा है। इतने में एक भेड़िया आक्रमण करके झुण्ड से एक बकरी ले भागा। उस बकरी का बच्चा छूट गया। सन्त महोदय को दया आ गई, वे उस बकरी के बच्चे को उठा लाए। पालने लगे, उस बच्चे हेतु जल और हरी घास की व्यवस्था करने लगे। दो महीने में ही मेमने का स्वास्थ्य बनने लगा। मोह-ममता गहरी होने लगी। उस बकरी के बच्चे की छाया हेतु एक झोपड़ी का सन्त ने निर्माण किया। घास आदि की व्यवस्था की। तात्पर्य यह कि जिस विश्व को छोड़कर सन्तजी घर से चले गए थे मोहवश फिर उसी भवसागर में फंस गए। उनकी आत्मा बकरी के बच्चे में तल्लीन हो गई।
व्यक्ति का मोह घर, वैभव-विलास, पुत्र-पुत्री तथा छोटी-छोटी अनेक वस्तुओं के प्रति होता है। यही मोहवश है। जब उनकी किसी चीज को किसी तरह की हानि मिलती है या किसी स्वार्थ पर चोट आती है, तब आत्मा को कष्ट मिलता है। मन की शान्ति भंग हो जाती है। व्यक्ति भीतर ही भीतर कष्ट का अनुभव करने लगता है। पुत्र का मोह व्यक्ति की आत्मा का सबसे बड़ा बंधन है। परिवार में किसी को कुछ हो जाये तो आपका मन दु:ख से भर जाता है। पुत्र से आप कुछ आशा करते हैं, पूरी न होने पर आपको पीड़ा होती है।
आपके पास एक घर है परन्तु आप एक फ्लैट और खरीदना चाहते हैं। यही नया बंधन है। आवश्यकता से अधिक कुछ भी रखना, विभिन्न प्रकार के शौक, धन की तृष्णा, फैशनपरस्ती, भोग-विलास की अतृप्त कामना ही आत्मा के बंधन हैं। इनमें से प्रत्येक वस्तु में बंधकर मनुष्य फड़फड़ाया करता है। आपको बांधे हुए हैं। जब कभी आपका मन शान्ति का लाभ उठाना चाहते हैं, तब इनमें से कोई भोग-पदार्थ आपको खींचकर पुन: पहले वाली स्थिति में ला पटकता है।
उदाहरण के लिए, आप घर पर एक कुत्ता पाल लेते हैं। एक प्राणी का परिवार में आगमन आत्मा पर एक नवीन बंधन होगा। उसके स्वास्थ्य, भोजन, आवास, हर्ष-विषाद की अनेक चिन्ताएं आपको जकड़ लेंगी। परिवार में पला हुआ प्रत्येक जीव आपकी आत्मा को जकड़ कर रखता है। आपके परिवार का प्रत्येक सदस्य आपसे एक प्राकर से बंधा है। यही ऋण-बंधन है। विलास की वस्तुएं, जिनके एक दिन न होने से आप दु:ख का अनुभव करते हैं, आपका बंधन है। मादक द्रव्य जैसे शराब सुरा, तम्बाकू, सिगरेट, पान-मसाला, काफी-चाय आदि वस्तुएं, जिनसे आप बंधे हैं, आपको आध्यात्मिक मार्ग पर बढ़ने नहीं देते। आपका प्रत्येक सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक उत्तरदायित्व आप पर बंधन स्वरूप होकर आता है। यदि आपको बढ़िया परिधान व कीमती कपड़े पहनने का व्यसन है तो इनकी अनुपलब्धता में आप अपने मन की शान्ति भंग कर लेंगे। यदि किसी दिन सामान्य भोजन प्राप्त हुआ और आप नाक-भौं सिकोड़ने लगे तो यह भी मन की शान्ति को भंग करने वाला है। दो-चार दिन के लिए भी आपको साधारण घर, कुटी या धर्मशाला में रहना पड़े तो आप बिगड़ ही उठते हैं।
यह सब इसलिए है कि आपने विविध रूपों से अपने आपको कृत्रिमताओं से बांध लिया है। आत्मतत्व को खो दिया है। आप आवश्यकता से ज्यादा सांसारिक वस्तुओं में लिप्त हैं। अपनी आत्मा के प्रति ईमानदारी से व्यवहार नहीं करते हैं। आपका सम्बन्ध विश्व की इन अस्थिर एवं क्षणिक सुख देने वाली वस्तुओं से नहीं हो सकता। आप उत्तम वस्त्रों में अपने जीवन के निरपेक्ष सत्य को नहीं भूल सकते। आप स्वतंत्र, संसार के क्षुद्र बंधनों से उन्मुक्त आत्मा हैं। आप वस्त्र नहीं, आभूषण नहीं, संसार के भोग-विलास नहीं, प्रत्युत सत्-चित्-आनन्द स्वरूप आत्मा हैं। आपका निकट संबंध आदि स्रोत परम-परमात्मा से है। उसी सत्ता में विलीन होने से आत्मसंतोष प्राप्त होता है। आपके जो संबंध अपने संसार में बंधे हुए हैं, वे दु:ख स्वरूप हैं। मृत्यु से जो आपको भय प्रतीत होता है, उसका कारण यही सांसारिक मोह है। माता, पिता, पुत्र, पत्नी आदि कोई भी संबंधी आपके साथ हमेशा नहीं रह सकता। यह बाहरी बंधन है। सबसे उत्तम मार्ग तो यह है कि इनमें रहते हुए भी सदा अपने आपको अलग समझा जाए। जैसे कमल जल में रहते हुए भी सदा जल से पृथक रहता है, उसी प्रकार सांसारिक बंधनों में रहते हुए, गृहस्थ केर् कत्तव्यों का पालन करते हुए भी सदैव अपने आपको विश्व से पृथक देखिए।
Wednesday, September 8, 2010
शांति चाहिये तो ध्यान लगाइये
काफी मानसिक कशमकश के बाद आखिरकार आपने तय किया कि शांति और तरोताजा के लिए बेहतरीन रास्ता ध्यान है। आप सुबह उठने का फैसला करते हैं ताकि रोता हुआ बच्चा, प्यारा जीवन साथी, शोर मचाने वाला पड़ोसी आदि आपके रंग में भंग डाल न सकें। आप अपने सबसे आरामदायक कपड़े पहनते हैं। एक शांत स्थान का चयन करते हैं और सही मुद्रा में बैठकर अमन व शांति की तलाश शुरू करना चाहते हैं। लेकिन आपको अहसास होता है कि ध्यान सही मुद्रा में शांति से एक जगह बैठने से कहीं बढ़कर है। कुछ चुनौतियां आपके सामने आ जाती हैं। उनका सामना करने के तरीके यह है :-सीधा नहीं बैठ सकतासाधु संत तो बिल्कुल सीधे बैठ सकते हैं। लेकिन हम जैसे साधारण लोगों के लिए प्रैक्टिस और अधिक प्रैक्टिस की आवश्यकता होती है, मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये। ऐसा विशेषज्ञों का मानना है। अगर आप दिलो-दिमाग लगाकर कुछ हासिल करना चाहते हैं तो सब कुछ मुमकिन है। लेकिन असल बात यह है कि शुरूआत करने वाले के लिये सीधा और स्थिर, वह भी लगातार बैठना असंभव है। व्यवहारिक तरीका यह है कि दीवार या पिलर का पहरा लिया जाये कम से कम शुरूआती दौर में। यदि ध्यान की शुरूआत कर रहे हों तो इस पर यह न सोचें कि पिलर के सहारे ऐसा करने से क्या फायदा?अनगिनत अटकाने वाली चीजेंइसमें शक नहीं कि मन भटकाने वाली अनेक चीजें मौजूद हैं। इस बात से हम भी सहमत हैं। इसलिये हमारा सुझाव है कि ध्यान सत्र सुबह के वक्त शुरू किया जाय। लेकिन अगर आपको सुबह नाश्ता तैयार करना हो, बच्चों को स्कूल और पति को दफ्तर भेजना हो तो सुबह के वक्त ध्यान लगाना कठिन है। जब तक घर काम खत्म होता है, बेहद थकान हो जाती है। अब अगर शाम को ध्यान लगायें तो पड़ोसी काफी या बतियाने के लिए बुला लेते हैं या टीवी पर कार्यक्रम अच्छा होता है।सुबह की जम्हाई…इसमें संयुक्त जम्हाइयां और ओह हो सुनाई दे रही हैं। सबेरे से हमारा मतलब सुबह 3 बजे नहीं है। अगर आप सोने वालों की बस्ती में रहते हैं तो सुबह 6 बजे ही ध्यान लगाने की शुरूआत में कोई बुराई नहीं है। जब एक बार घर में कोई उठ जाता है तो कुछ न कुछ काम लगा ही रहता है। सुबह सबेरे या देर शाम आदर्श समय है ध्यान लगाने के लिये।क्या ध्यान नींद के बराबर हैं?ध्यान से संबंधित यह सबसे आम गलतफहमी है। ध्यान अवसर है अपनी जरूरतों और महत्वाकांक्षाओं का मूल्यांकन करने के लिये। कुछ लोग ध्यान लगाने में श्लोक व मंत्री पढ़ते हैं। साथ ही आप साधारण श्वांस एक्सरसाइज कर सकते हैं ताकि आपका सिस्टम नियमित रहें।सवाल यह है कि ध्यान लगाने पर इतना जोर क्यों लगाया जा रहा है? अगर तनाव, थकान आपको घेरे रखते हैं। तो इनसे बचने का आसान और प्रभावी तरीका ध्यान लगाना है। इसके अलावा ध्यान से मन, शरीर और आत्मा शांत रहती है। यही कारण पर्याप्त है ध्यान लगाने के लिये। क्या आप इस बात से सहमत नहीं हैं?
क्या आप सदैव तनावग्रस्त रहते हैं
आज के जीवन में किशोर हों या वयस्क, सभी का अक्सर तनाव से सामना होता है। तनाव के क्षण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। क्या स्वयं को हम तनावमुक्त कर सकते हैं? जी हां, सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर आप शांत भाव से उसके कारणों पर चिंतन-मनन करें तो।अपने किशोर होते बच्चे (पुत्र अथवा पुत्री) के आज्ञाकारी न होने पर आप स्वयं में संस्कारों की कमी मानें और सदैव यह प्रयास करें कि आप उनका जैसा व्यवहार अपने साथ चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार आप भी अपने बड़ों के प्रति करें। जो जैसा करता है उसे वैसा ही लौटकर मिलता है, यही जीवन का सत्य है। इसके साथ ही बच्चे और किशोर सदैव अपने बड़ों का अनुकरण करते हैं। वे परिवार में जैसा देखते हैं वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं।यदि आप अपने खराब स्वास्थ्य के प्रति निराश और तनावग्रस्त हैं तो नियमित आहार-विहार अपनाएं। निराशा के समय अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करें या मनपसंद संगीत सुनें।आर्थिक कष्ट होने पर अपने से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों पर नजर डालें कि उन्हें कितने कम साधन उपलब्ध हैं, फिर भी वे संतुष्ट हैं। ‘संतोषधन’ से बढ़कर जीवन में और कुछ भी नहीं है। यह हर व्यक्ति को तनावमुक्त रखता है। व्यापार में हानि या तो गलत निर्णय लेने पर होती है अथवा कर्मों का फल समझकर। अपने कार्यों को सही दिशा दें। अपने पारिवारिक कर्तव्यों को कभी न भूलें, इससे आप तनाव मुक्त रहेंगे।परीक्षा में तनावमुक्त रहने का सबसे बढ़िया उपाय है, वर्ष भर नियमित रूप से अध्ययन करते रहना।नौकरी न मिल पाने पर हताश, निराश और तनावग्रस्त रहने की बजाय अपनी कमियों की ओर देखें। निरंतर प्रयास जारी रखें और कड़ी मेहनत के साथ दृढ़ विश्वास रखें।अफसर या बॉस की नाराजगी पर शांत भाव से पहले अपनी गलतियों को समझें, ताकि भविष्य में उनकी पुनरावृत्ति न होवे।जीवनसाथी से मनमुटाव की स्थिति में जो जैसा है, उसे उसी प्रकार स्वीकार करना सीखें। छोटी-छोटी बातों को तूल देकर ‘प्रतिष्ठा’ का प्रश्न न बनायें। मन मुटाव की स्थिति में भी वह आपको प्यार करते हैं, यह स्मरण रखें।मित्रों और संबंधियों द्वारा आपकी बात का समर्थन न किए जाने पर ध्यान रखें कि यह आवश्यक नहीं है कि जिस बात को आप सही समझते हैं, वह दूसरे को भी सही लगे ही। उनके न कहने पर आप तनावग्रस्त होकर अपने व्यवहार को प्रभावित न करें। शान्त रहकर सोचें।जब कभी आप तनावग्रस्त हों, दूसरों की गलतियों पर ध्यान देने की बजाय अपने में कमजोरियों को ढूंढने का प्रयास करें। ईश्वर में विश्वास बनाए रखें। असफलताओं और बुरे दिनों को सच्चाई से स्वीकारना सीखें। सदैव अच्छे के लिए प्रयास करें किंतु बुरे के लिए भी हमेशा तैयार रहें। दूसरों की भलाई के कार्य करते रहें और सभी की शुभकामनाएं साथ पाकर तनावमुक्त हो जाएं।बोलें तो मधुर और सकारात्मक बोलें वरना चुप रहकर सामने वाले को जीत लें। बोलने से पहले सोचें। स्थान के अनुरुप बोलें और उचित सम्बोधन कर बोलें। सरल भाषा व स्पष्ट उच्चारण से बोलें, संक्षिप्त बोलें। अच्छा वक्ता बनने से पूर्व अच्छा श्रोता बनें। आत्मप्रशंसा से बचें। स्ेहपूर्वक संवाद बनाये रखें, क्रोध न करें। बोलते समय सामने वाले की आंख से आंख मिलाकर बात करें, न कि सिर नीचा कर अपनी बात कहें।किसी के व्यक्तिगत मामले में दखल न दें।तटस्थ रहकर सबको जीता जा सकता है। ‘मौन’ सर्वश्रेष्ठ औषधि है, अत: बढ़ते तनाव में मौन धारण कर लें।
Wednesday, September 1, 2010
यदि बढ़ने लगे मानसिक तनाव
तकरीबन हर इंसान कोई-न-कोई जिम्मेदारी निभा रहा है, फिर चाहे वह जिम्मेदारी घर की हो या दफ्तर अथवा समाज या फिर देश की। लेकिन जो इन जिम्मेदारियों को एक बोझ समझकर ढोने लगते हैं, वे मानसिक दबाव में जिन्दगी गुजारते हैं, जिसके कारण उनके शरीर में विभिन्न रोग घर कर लेते हैं, जैसे रक्तचाप का बढ़ना, चिड़चिड़ापन, नकारात्मक नजरिया, गैस, कब्ज, अम्लपित्त इत्यादि।भटिण्डा से करुणा धारीवाल बताती हैं कि विवाह के कुछ दिनों बाद तक मेरे पति काम-धंधा करते थे लेकिन अब दो बच्चे होने के बाद वो कुछ नहीं करते बल्कि घरेलू सामान की ही बिक्री करके शराब के नशे में गलियों में घूमते हैं। सास-ससुर मुझे बोलते हैं कि तुम उसे समझाओ लेकिन वो हैं कि कुछ मानने, समझने को तैयार ही नहीं। घरेलू परेशानियों के कारण मेरा रक्तचाप अक्सर घट जाता है, यहां तक कि कभी-कभी तो मैं बेहोश भी हो जाती हूं।अधिकांश लोग दूसरे के सुख को देखकर दुखी होते हैं। कुछ ही ऐसे लोग हैं, जो वास्तव में परेशान होते हैं, जिन्हें अपनी जिम्मेदारी का बोझ दबाता है। हमारे एक पड़ोसी हैं, जो अपने या अपने परिवार के बजाय दूसरों के बारे में ज्यादा बातें जानकर परेशानियां सिर पर लेकर घूमते हैं। उन्हें असमय कई बीमारियों ने घेर लिया। बात-बात में चिड़चिड़ापन इसी बात का प्रतीक है।निराशावादी स्त्री-पुरुष थोड़ा काम या जिम्मेदारी आ जाने पर घबरा जाते हैं। उसके बारे में सोच-सोचकर ही उनके हाथ-पैर फूलने लगते हैं। डर के मारे वे आशंकित हो जाते हैं। थोड़ी-सी परेशानी होने पर ही ज्योतिषियों, फकीरों एवं झाड़-फूक वालों के चक्कर में पड़ने लगते हैं। धागे, ताबीजों एवं पत्थर के टुकड़ों को हाथ अथवा गले में पहनकर उन्हें ‘सुरक्षा कवच’ समझकर अपने कर्तव्य मार्ग से विमुख हो जाते हैं और जब असफलता मिलती है तो परेशान हो उठते हैं।कुछ लोग झूठी शान-शौकत दिखाने के चक्कर में किश्तों में घरेलू सामान खरीदने के लिए अपनी आमदनी से ज्यादा कर्ज ले लेते हैं, जो आगे चलकर उनके लिए मानसिक तनाव का एक बहुत बड़ा कारण बनता है। फिजूल की पार्टियों में ऐश-आराम के शौक पालने के कारण भी तरह-तरह की नयी-नयी मुसीबतें सामने आती रहती हैं।बहरहाल, अगर आप चाहते हैं कि आप बेवजह मानसिक तनाव के शिकार न हों तो इसके लिए जरूरी है कि मानसिक तनाव से बचने के लिए यहां प्रस्तुत किये जा रहे कुछ कारगर उपायों पर एक नजर डाल लें और यथासंभव इन पर अमल करें-* छोटी-छोटी बातें हर घर में होती ही रहती हैं, इन्हें ज्यादा तूल न पकड़ने दें। यदि ऐसी बातें आपकी समझ से दूर है तो उनका बोझ अपने सिर पर रखकर मत घूमें।* बाह्य लोगों की बातों पर ध्यान न दें। उन्हें आपके परिवार की खुशी अच्छी नहीं लगती, इसलिए हो सकता है कि ऐसे लोग आपको बहकाकर आपके घर में तनाव पैदा कराकर खुशी महसूस करते हों।* जिम्मेदारियों का खुले दिल से स्वागत करें और उन्हें प्रेमपूर्वक खुशी-खुशी बखूबी निभाएं। इससे आपकी मानसिकता में भी सहज बदलाव आएगा।* प्रत्येक कार्य की शुरुआत उत्साहपूर्वक करें। हर कार्य को धैर्य और लग्न से पूरा करें तथा आशाजनक परिणामों का इंतजार करें।* यदि शरीर में कोई बीमारी घर कर ले तो बेवजह की चिन्ता पालने के बजाय इलाज के लिए किसी अच्छे चिकित्सक से सम्पर्क करें। आज तो कैंसर जैसी लाइलाज समझी जाने वाली गंभीर बीमारी का भी इलाज संभव हो गया है। चिन्ता करने से तो शरीर में कई अन्य रोग भी घर कर लेते हैं।
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