Tuesday, June 8, 2010

तनाव से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है



कोलेस्ट्रॉल एक ऐसा रासायनिक यौगिक है जो धमनियों को अवरुध्द करने का कारण बनता है। यह शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक भी है। मस्तिष्क के अंदर जो ठोस पदार्थ विद्यमान है, उसका 5 प्रतिशत अंश कोलेस्ट्रॉल है। यही पदार्थ स्त्री पुरुष हार्मोनों का जनक है। कोलेस्ट्रॉल शरीर में स्वत: निर्मित होता है तथा इसे आहार के माध्यम से भी सीधे ग्रहण किया जाता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल का अनुपात बढ़ जाने पर रक्त में भी इसका अनुपात बढ़ जाता है। बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल रक्त -नलिकाओं की दीवारों पर जमने लगता है। ऐसा होने पर रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है। फलत: रक्त प्रवाह की गति मंद हो जाती है और फिर रक्त की मंद गति के कारण अधिक कोलेस्ट्रॉल दीवारों पर जमने लगता है।
भावनात्मक तनाव उत्पन्न होने पर रक्त में चर्बीयुक्त नलिकाओं की बीमारियों में उपरोक्त पदार्थ ही बीमारी का कारण बनते हैं। मन के तनावों से सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है और यह कुछ पदार्थों (कोटेकोलेमाइन) के स्राव को बढ़ाता देता है। सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम के उत्तेजित हो जाने के कारण चर्बी शरीर के टिशुओं से विलग होकर पूरे शरीर में भ्रमण करते हुए रक्त-प्रवाह में मिल जाती है। चर्बी शरीर का ईंधन है जो सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम के उद्वेग, उड़ान और उड़ान की प्रतिक्रिया (फ्लाइट, फाइट और रिएक्शन आफ फ्लाइट) की स्थिति में काम आती है। इस प्रकार चर्बी वास्तव में शरीर के लिए उपयोगी है। प्रतिदिन जब हमें तनाव सहने पड़ते हैं, उस समय इस चर्बी की खपत होती है। प्रतिदिन के कार्यों में इसका व्यय होता है, जिसके फलस्वरूप विषाक्त पदार्थ और इसका एकत्रीकरण नहीं हो पाता।
यदि हमारे तनाव जीर्ण हों अथवा काल्पनिक ही हों (वास्तव में अधिकांशत: तनाव अवास्तविक ही हुआ करते हैं) तब सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम वातावरण से अनुपयुक्त व न्यूरोटिक प्रकार के संवेदन ग्रहण करने लगता है। फलस्वरूप उच्च-रक्तचाप, अत्यधिक कोलेस्ट्रॉल मिश्रित रक्त, रक्त में उपस्थित पदार्थों में बढ़ी हुई चिपचिपाहट और एक बार थक्के बन जाने के बाद पुन: थक्के घुल न पाने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस प्रकार रक्त-नलिकाओं की व्याधियों को बढ़ावा मिलता है।
फ्राइडमैन और रोजमैन (टाइप ए बिहेवियर एंड युअर हार्ट, नोफ, एन.बाय. 1974) के अनुसार अधिकांश लोग जो अपने हृदय को लेकर कार्डियोलाजिस्टों के पास जाने वाले होते हैं, वे समाज में उच्च-पद या इसी तरह का कोई उतावलापन पाले रहते हैं। ऐसे लोगों के रक्त-प्रवाह में चर्बी का उच्च स्तर रहता है तथा एड्रैनेलिन जैसे तनाव-हार्मोन अधिक मात्रा में उपस्थित रहते हैं।
जब रक्त में चर्बी का स्तर 250 मिग्रा. कोलेस्ट्रॉल और 160 मिग्रा. ट्राइग्लिसेराइड के लिए खतरनाक स्थिति तक बढ़ जाता है तब दवायें देकर इस स्तर को कम करने का प्रयास किया जाता है। तथापि देखा गया है कि ये दवायें एक बार हृदय-दौरा शुरू होने के बाद कारगर नहीं होती हैं।
दवायें उन लोगों की मदद कर सकती हैं जिनका रोग अभी गहरी अवस्था में नहीं है। वस्तुत: हमें किसी ऐसे तरीके की आवश्यकता है जिससे किसी भी स्तर पर हृदय रोग को पूरी तरह ठीक किया जा सके।
देखा गया है कि शाकाहार रक्त की चर्बी को घटाने हेतु उत्तम है। मांसाहार रक्त चर्बी को बढ़ाता है। आहार नियंत्रण, दवायें, आसन, प्राणायाम और ध्यान इन सबके मिले-जुले उपचार से स्वास्थ्य-लाभ की संभावना बढ़ सकती है।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के डा. उडुप्पा ने दर्शाया है कि श्वासन आसन- प्राणायाम से सामान्य व्यक्तियों में रक्त-कोलेस्ट्रॉल की मात्रा घटायी जा सकती है। के.एस. गोपाल ने देखा कि छह महीने तक नियमित रूप से यौगिक प्रशिक्षण देने के बाद उनके 55 प्रतिशत प्रशिक्षणार्थियों का रक्त-कोलेस्ट्रॉल कम हो गया था।
ध्यान और योग के शिथिलीकरण के अभ्यासों से तनाव, उच्च-रक्तचाप और दूसरे रोगों की उपस्थिति का उन्मूलन होता है। इन प्रभावों का कारण सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम की बढ़ी हुई क्रियाशीलता है और पैरासिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम की न्यून हुई क्रियाशीलता होती है। अभ्यासी को आक्सीजन की कम खपत, श्वास-प्रश्वास की घटी हुई गति, कार्डियक उत्पादन में कमी, हृदय गति में कमी, आर्टरियों के रक्त सेक्टेट की कमी का स्वत: अनुभव होने लगता है। साथ ही शांति और अच्छेपन का अनुभव भी होता है। यह अवस्था स्वस्थ हृदय की परिचायक है। इस समय व्याधि-ग्रस्त टिशु स्वास्थ्य-लाभ करने लगते हैं। इस प्रकार की विश्रांत अवस्था हृदय की आक्सीजन आवश्यकता को कम कर देती हैं। शरीर की फाइब्रीओलाइटिक-क्रियाशीलता अर्थात् रक्त के थक्कों के पुन: विलयन की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है। वास्तव में मन व शरीर को उस अवस्था तक चिंता व तनाव से मुक्त करना होता है कि रक्त के थक्के बने ही नहीं। ध्यान के अभ्यास से यह अवस्था प्राप्त की जा सकती है, क्योंकि देखा गया है कि इससे सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम की क्रियाशीलता कम हो जाती है जो ऐसी परिस्थितियों के उत्पादक होते हैं।
शोधकर्ताओं ने अब अच्छी तरह पता लगा लिया है कि ध्यान से सीधे रक्त-चर्बी स्तर पर प्रभाव पड़ता है। ध्यान से सिरम कोलेस्ट्रॉल के स्तर को न्यून करने में मदद मिलती है तथा शिथिलीकरण अभ्यासों से उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम किया जा सकता है।

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