आधुनिक युवा पीढ़ी भले ही अपनी प्राचीन सभ्यता और रीति-रिवाजों से मुंह
फेरती हो परन्तु जब उन्हें पाश्चात्य जगत के लोग भी स्वीकारने लगते हैं तो
युवा पीढ़ी भी उनका अनुसरण करने ही लगती है। ऐसे ही जब योगाभ्यास को
पाश्चात्य जगत ने योग के नाम से प्रस्तुत किया तो हमारे युवाओं ने भी उसकी
पूरी वैज्ञानिकता, आध्यात्मिकता तथा महानता स्वीकारी थी।
अथाह, अनमोल ज्ञान
प्रार्थना के संदर्भ में जो अध्ययन अमेरिका में हुए हैं उनको देख कर यही लगता है कि कुछ समय बाद हमारी युवा पीढ़ी भी प्रार्थना, स्तुति व मंत्रोच्चारण का महत्व समझने लगेगी। इस अध्ययन में यह दावा किया गया है कि प्रार्थना करने मात्र से ही बीमारियों को रोका या कम किया जा सकता है। यही नहीं, बल्कि प्रार्थना करने से उन लोगों को भी स्वास्थ्य लाभ मिलता है, जिन्हें यह भी नहीं पता होता कि कोई उनके स्वास्थ्य की मंगल कामना के लिये प्रार्थना कर रहा है।
‘कान्सास सिटी’ के एक अस्पताल ‘सेन्ट ल्यूक’ में कारोनरी केयर सेंटर के मरीजों पर विलियन हैरिस ने 12 मास तक प्रार्थना के संदर्भ में अध्ययन किया और पाया कि जिन मरीजों के लिये प्रार्थना नहीं होती था, उनकी सेहत पूर्ववत ही रही या इस तरह का कोई सुधार नहीं हो पाया।
यह अध्ययन चूंकि विदेश में हुआ है इसलिये आधुनिक युवा नि:संदेह इस पर विश्वास कर लेगा और प्रार्थना की शक्ति को पहचानने लगेगा जबकि सच्चाई तो यह है कि हमारे पूर्वजों, योगियों, सन्तों, महात्माओं और ऋषि मुनियों ने प्रार्थना की शक्ति, महत्व और मूल्य को बहुत पहले से ही समझ लिया था। यही कारण है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में पूजा-पाठ, आराधना, मंत्रोच्चारण, देवी-देवताओं की स्तुति आदि की बातें वर्णित हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में ऐसे कई उदाहरण भी आते हैं जिनमें केवल प्रार्थना या मंत्र शक्ति मात्र से ही मरणासन्न व्यक्ति भी स्वस्थ हो जाता है या फिर मर चुका व्यक्ति भी जीवित हो जाता है। सत्ती सावित्री द्वारा की गयी प्रार्थना एक अच्छा उदाहरण है।
इसी प्रकार, हमारी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान आदि से हमें जो अथाह, अनमोल ज्ञान एवं विद्या रूपी खजाना मिला है, उसी का एक अंश मात्र हैं रत्न संबंधी ज्ञान जिसका प्रचलन आजकल दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है।
जिन रत्नों को आज हम अपनी शानो शौकत, रुतबे, ऐश्वर्य, स्तर, समृध्दि आदि के लिये पहनते हैं या कभी-कभी ज्योतिष शास्त्र के अनुरूप ग्रहण करते हैं, उनके पीछे हमारी प्राचीन परंपरा में ठोस ज्ञानाधार और तार्किकता रही है जिसे आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करने लगा है। इसके साथ ही यह भी स्वीकार किया जाने लगा है कि रत्नों में औषधीय-शक्ति होती है जिससे बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।
हमारे यहां की प्राचीन परंपरा के अनुसार यह माना जाता है कि जिस प्रकार से हमारे जीवन को ग्रहों द्वारा प्रभावित किया जाता है, उसी प्रकार से उन ग्रहों से संबंधित रत्नों द्वारा भी हमारा स्वास्थ्य और भाग्य प्रभावित किया जा सकता है। परंपरागत यह विश्वास किया जाता है कि मनुष्य की देह प्रकाश के सात रंगों से बनी है अर्थात् यह प्रकाश के साथ प्रकार की किरणों से संबंधित होती है। देह में जब कभी किसी किरण की कमी या अधिकता हो जाती है तो बीमारी या रुग्णता होने लगती है, अत: उस किरण से संबंधित रत्न पहन कर इस संतुलन को साम्यावस्था में लाकर पुन: स्वास्थ्य लाभ उठाया जा सकता है।
रत्नों से जिस प्रकार की किरणें संचरण करती है, उसी प्रकार की ऊर्जा भी प्रवाहित होती रहती है और चूंकि रत्न शरीर को स्पर्श करते हुए पहने जाते हैं। तो ऊर्जा भी शरीर में प्रवाहमान होती रहती है। ज्योतिषियों द्वारा भी रत्नों की उपयोगिता जातक की ग्रह दशा आदि से संबंधित होती है और वे ग्रह, नक्षत्र आदि के आधार पर रत्नों को पहनने की सलाह देते हैं।
रत्नों के औषधीय प्रभाव
रत्नों में एक प्रमुख रत्न पुखराज होता है। पुखराज का संबंध बृहस्पति ग्रह से होता है। माना जाता है कि पुखराज में भाग्य, समृध्दि और ऐश्वर्य को उद्भूत करने की शक्ति तो होती ही है, साथ ही साथ इससे गठिया बाय, जोड़ों का दर्द, नपुंसकता, बांझपन आदि बीमारियों का उपचार भी किया जा सकता है।
लाल रंग के रत्न मूंगे को मंगल ग्रह से संबंधित कहा जाता है। यह रत्न उत्सर्जन ग्रंथियों, स्वेद-ग्रंथि, मूत्र-ग्रंथि गुर्दे से संबंधित बीमारियों में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार यह रत्न एक तरह से शारीरिक शुध्दि करने में सहायक होता है और इसका प्रयोग व्यक्ति के लिये उपयोगी माना जाता है।
मोती को शीतल रत्न समझा जाता है। इसका संबंध चांद से है। मोती से उन बीमारियों को समाप्त किया जा सकता है जो गरम किरणों से उत्पन्न होती हैं जैसे फोड़े-फुंसी, लू लगना, गर्मी लगना, उच्च रक्तचाप, फफोले तथा गर्भाशय से संबंधित बीमारी आदि। चूंकि मोती शीतल रत्न होता है और इसमें से शीतल ऊर्जा प्रवाहित होती है, अत: यह शीतलता प्रदायिनी कार्य बहुत अच्छी तरह से कर सकने में सक्षम माना जाता है।
पन्ने को बुध ग्रह से जोड़ा जाता है जिसका संबंध मस्तिष्क, स्मरण शक्ति, बुध्दि, रचनात्मक कार्यकुशलता, स्ायुतंत्र आदि से होता है। पन्ने का उपयोग कई प्रकार की बीमारियों में किया जाता है जैसे आंखों से संबंधित बीमारियां, याददाश्त से संबंधित बीमारियां, कान के रोग, हकलाहट, मिरगी आदि। कहा जाता है कि पन्ने में इन बीमारियों को कम या समाप्त करने की अद्भुत क्षमता होती है।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में जिन रत्नों का उल्लेख मिलता है उनमें एक रत्न का नाम है लाल। इस लाल नामक रत्न को सूर्य देव से संबंधित समझा जाता है। जिस प्रकार मोती शीतल प्रकृति का रत्न होता है, उसी प्रकार लाल गरम प्रकृति का रत्न है। लाल में से गर्म किरणों के ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। अत: यह उन बीमारियों के लिये पहना जाता है, जो शीतलता से या ठंडा से उत्पन्न हुई हों, इसीलिए इसे सर्दियों में ही पहनना उपयुक्त रहता है। लाल से हड्डियों, गठिया, ठंड लगना, रक्त से संबंधित बीमारी, शरीर कमजोर होना आदि व्याधियां दूर होती हैं। इसी प्रकार की गरम प्रकृति वाला रत्न होता है लहसुनिया। इसका ग्रह केतु होता है तथा इसे लकवा, कैंसर, मुंहासे, चर्म रोग आदि बीमारियों के निदान के लिये ग्रहण किया जाता है।
नीलम को शनि ग्रह से संबंधित माना गया है। नीलम भी मोती के सदृश्य शीतल किरणें प्रवाहित करता है। नीलम से अलसर, पेट संबंधी रोग (दस्त, पेचिश आदि) पाचन क्रिया, दिमाग से संबंधित बीमारियां, पागलपन, पार्किन्सन, लकवा, दिल संबंधी रोग आदि के लिये स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
जब रत्नों के औषधीय प्रभावों की बात हो तो हीरे को एक तरफ सरका दिया जाना अनुचित नहीं होगा। माना जाता है कि हीरा न तो बहुत अधिक गरम प्रकृति का होता है और न ही बहुत अधिक शीतल प्रकृति का। यद्यपि इसका संबंध शुक्र ग्रह से होता है परन्तु इसमें ऐसी कोई रोग निदान क्षमता नहीं होती जैसी कि अन्य रत्नों में होती है यानी हीरा इस मामले में अन्य रत्नों के मुकाबले बहुत पीछे रहता है परन्तु इसका लाभ यह जरूर माना जाता है कि हीरे को कोई भी पहन सकता है, परन्तु सिर्फ दिखावे के लिये।
अथाह, अनमोल ज्ञान
प्रार्थना के संदर्भ में जो अध्ययन अमेरिका में हुए हैं उनको देख कर यही लगता है कि कुछ समय बाद हमारी युवा पीढ़ी भी प्रार्थना, स्तुति व मंत्रोच्चारण का महत्व समझने लगेगी। इस अध्ययन में यह दावा किया गया है कि प्रार्थना करने मात्र से ही बीमारियों को रोका या कम किया जा सकता है। यही नहीं, बल्कि प्रार्थना करने से उन लोगों को भी स्वास्थ्य लाभ मिलता है, जिन्हें यह भी नहीं पता होता कि कोई उनके स्वास्थ्य की मंगल कामना के लिये प्रार्थना कर रहा है।
‘कान्सास सिटी’ के एक अस्पताल ‘सेन्ट ल्यूक’ में कारोनरी केयर सेंटर के मरीजों पर विलियन हैरिस ने 12 मास तक प्रार्थना के संदर्भ में अध्ययन किया और पाया कि जिन मरीजों के लिये प्रार्थना नहीं होती था, उनकी सेहत पूर्ववत ही रही या इस तरह का कोई सुधार नहीं हो पाया।
यह अध्ययन चूंकि विदेश में हुआ है इसलिये आधुनिक युवा नि:संदेह इस पर विश्वास कर लेगा और प्रार्थना की शक्ति को पहचानने लगेगा जबकि सच्चाई तो यह है कि हमारे पूर्वजों, योगियों, सन्तों, महात्माओं और ऋषि मुनियों ने प्रार्थना की शक्ति, महत्व और मूल्य को बहुत पहले से ही समझ लिया था। यही कारण है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में पूजा-पाठ, आराधना, मंत्रोच्चारण, देवी-देवताओं की स्तुति आदि की बातें वर्णित हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में ऐसे कई उदाहरण भी आते हैं जिनमें केवल प्रार्थना या मंत्र शक्ति मात्र से ही मरणासन्न व्यक्ति भी स्वस्थ हो जाता है या फिर मर चुका व्यक्ति भी जीवित हो जाता है। सत्ती सावित्री द्वारा की गयी प्रार्थना एक अच्छा उदाहरण है।
इसी प्रकार, हमारी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान आदि से हमें जो अथाह, अनमोल ज्ञान एवं विद्या रूपी खजाना मिला है, उसी का एक अंश मात्र हैं रत्न संबंधी ज्ञान जिसका प्रचलन आजकल दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है।
जिन रत्नों को आज हम अपनी शानो शौकत, रुतबे, ऐश्वर्य, स्तर, समृध्दि आदि के लिये पहनते हैं या कभी-कभी ज्योतिष शास्त्र के अनुरूप ग्रहण करते हैं, उनके पीछे हमारी प्राचीन परंपरा में ठोस ज्ञानाधार और तार्किकता रही है जिसे आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करने लगा है। इसके साथ ही यह भी स्वीकार किया जाने लगा है कि रत्नों में औषधीय-शक्ति होती है जिससे बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।
हमारे यहां की प्राचीन परंपरा के अनुसार यह माना जाता है कि जिस प्रकार से हमारे जीवन को ग्रहों द्वारा प्रभावित किया जाता है, उसी प्रकार से उन ग्रहों से संबंधित रत्नों द्वारा भी हमारा स्वास्थ्य और भाग्य प्रभावित किया जा सकता है। परंपरागत यह विश्वास किया जाता है कि मनुष्य की देह प्रकाश के सात रंगों से बनी है अर्थात् यह प्रकाश के साथ प्रकार की किरणों से संबंधित होती है। देह में जब कभी किसी किरण की कमी या अधिकता हो जाती है तो बीमारी या रुग्णता होने लगती है, अत: उस किरण से संबंधित रत्न पहन कर इस संतुलन को साम्यावस्था में लाकर पुन: स्वास्थ्य लाभ उठाया जा सकता है।
रत्नों से जिस प्रकार की किरणें संचरण करती है, उसी प्रकार की ऊर्जा भी प्रवाहित होती रहती है और चूंकि रत्न शरीर को स्पर्श करते हुए पहने जाते हैं। तो ऊर्जा भी शरीर में प्रवाहमान होती रहती है। ज्योतिषियों द्वारा भी रत्नों की उपयोगिता जातक की ग्रह दशा आदि से संबंधित होती है और वे ग्रह, नक्षत्र आदि के आधार पर रत्नों को पहनने की सलाह देते हैं।
रत्नों के औषधीय प्रभाव
रत्नों में एक प्रमुख रत्न पुखराज होता है। पुखराज का संबंध बृहस्पति ग्रह से होता है। माना जाता है कि पुखराज में भाग्य, समृध्दि और ऐश्वर्य को उद्भूत करने की शक्ति तो होती ही है, साथ ही साथ इससे गठिया बाय, जोड़ों का दर्द, नपुंसकता, बांझपन आदि बीमारियों का उपचार भी किया जा सकता है।
लाल रंग के रत्न मूंगे को मंगल ग्रह से संबंधित कहा जाता है। यह रत्न उत्सर्जन ग्रंथियों, स्वेद-ग्रंथि, मूत्र-ग्रंथि गुर्दे से संबंधित बीमारियों में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार यह रत्न एक तरह से शारीरिक शुध्दि करने में सहायक होता है और इसका प्रयोग व्यक्ति के लिये उपयोगी माना जाता है।
मोती को शीतल रत्न समझा जाता है। इसका संबंध चांद से है। मोती से उन बीमारियों को समाप्त किया जा सकता है जो गरम किरणों से उत्पन्न होती हैं जैसे फोड़े-फुंसी, लू लगना, गर्मी लगना, उच्च रक्तचाप, फफोले तथा गर्भाशय से संबंधित बीमारी आदि। चूंकि मोती शीतल रत्न होता है और इसमें से शीतल ऊर्जा प्रवाहित होती है, अत: यह शीतलता प्रदायिनी कार्य बहुत अच्छी तरह से कर सकने में सक्षम माना जाता है।
पन्ने को बुध ग्रह से जोड़ा जाता है जिसका संबंध मस्तिष्क, स्मरण शक्ति, बुध्दि, रचनात्मक कार्यकुशलता, स्ायुतंत्र आदि से होता है। पन्ने का उपयोग कई प्रकार की बीमारियों में किया जाता है जैसे आंखों से संबंधित बीमारियां, याददाश्त से संबंधित बीमारियां, कान के रोग, हकलाहट, मिरगी आदि। कहा जाता है कि पन्ने में इन बीमारियों को कम या समाप्त करने की अद्भुत क्षमता होती है।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में जिन रत्नों का उल्लेख मिलता है उनमें एक रत्न का नाम है लाल। इस लाल नामक रत्न को सूर्य देव से संबंधित समझा जाता है। जिस प्रकार मोती शीतल प्रकृति का रत्न होता है, उसी प्रकार लाल गरम प्रकृति का रत्न है। लाल में से गर्म किरणों के ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। अत: यह उन बीमारियों के लिये पहना जाता है, जो शीतलता से या ठंडा से उत्पन्न हुई हों, इसीलिए इसे सर्दियों में ही पहनना उपयुक्त रहता है। लाल से हड्डियों, गठिया, ठंड लगना, रक्त से संबंधित बीमारी, शरीर कमजोर होना आदि व्याधियां दूर होती हैं। इसी प्रकार की गरम प्रकृति वाला रत्न होता है लहसुनिया। इसका ग्रह केतु होता है तथा इसे लकवा, कैंसर, मुंहासे, चर्म रोग आदि बीमारियों के निदान के लिये ग्रहण किया जाता है।
नीलम को शनि ग्रह से संबंधित माना गया है। नीलम भी मोती के सदृश्य शीतल किरणें प्रवाहित करता है। नीलम से अलसर, पेट संबंधी रोग (दस्त, पेचिश आदि) पाचन क्रिया, दिमाग से संबंधित बीमारियां, पागलपन, पार्किन्सन, लकवा, दिल संबंधी रोग आदि के लिये स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
जब रत्नों के औषधीय प्रभावों की बात हो तो हीरे को एक तरफ सरका दिया जाना अनुचित नहीं होगा। माना जाता है कि हीरा न तो बहुत अधिक गरम प्रकृति का होता है और न ही बहुत अधिक शीतल प्रकृति का। यद्यपि इसका संबंध शुक्र ग्रह से होता है परन्तु इसमें ऐसी कोई रोग निदान क्षमता नहीं होती जैसी कि अन्य रत्नों में होती है यानी हीरा इस मामले में अन्य रत्नों के मुकाबले बहुत पीछे रहता है परन्तु इसका लाभ यह जरूर माना जाता है कि हीरे को कोई भी पहन सकता है, परन्तु सिर्फ दिखावे के लिये।
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