इस भागमदौड़ भरी जिन्दगी में लगभग हर मनुष्य के जीवन में ऐसे अवसर आते रहते हैं जब चिंताएं उसे घेर लेती हैं। कुछ तो अपनी सूझ बूझ और धैर्य के कारण उनका निवारण कर मुक्ति पा लेते हैं किन्तु कुछ लोग भीरू प्रकृति के होते हैं जो समस्याओं के आ जाने पर उसका हल खोजने के बजाय भीतर ही भीतर चिंता रूपी अग्नि में अपने आपको जलाने लगते हैं।
खैर, इस वास्तविकता को भी नकारा नहीं जा सकता कि चिंताओं से इस भौतिक युग में पीछा छुड़ाना मुश्किल है क्योंकि हमारी इच्छाएं और कार्यक्षेत्र इतना फैल गया है कि चिंताओं से बिल्कुल ही मुक्ति पा जाना तो कठिन है। मनुष्य को चिंताग्रस्त न रहकर उसका उपाय खोजना चाहिये। चिंताओं में घुलते रहने से हमारा स्वास्थ्य और आयु क्षीण होते हैं। मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययन के द्वारा यह तथ्य सामने आया है कि पुरुषों की तुलना में महिलायें समस्याओं से तीन गुणा ज्यादा चिंतित होती हैं। वे समाधान की ओर ध्यान नहीं देती, उल्टे समस्याओं की भयावहता के बारे में सोच-सोचकर परेशान रहती हैं। उनकी संघर्ष क्षमता, सहनशीलता और सोच बहुत कमजोर होती है। दूसरी तरफ ऐसे पुरुष जो भावुक, भीरू और कमजोर हृदय वाले होते हैं, वे समस्या के परिणाम के विपरीत विषय में ही सोचते हैं। नकारात्मक विचारों के कारण उनका मन मस्तिष्क और शरीर जर्जर हो जाता है और उनकी निर्णय क्षमता भी नष्ट होने लगती है। अत्यधिक चिंता का मानव शरीर पर बहुत बुरा और गहरा प्रभाव पड़ता है। इससे अनिद्रा, डायरिया, पेट की गड़बड़ी, मांसपेशियों में तनाव, मधुमेह, सिरदर्द तथा मानसिक तनाव जैसे रोग घेर लेते हैं। चिंता मनुष्य के स्वास्थ्य को ही नहीं बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी नष्ट भ्रष्ट कर देती है। असमय में ही सिर के बाल सफेद हो जाते हैं, चेहरे पर झुर्रियां, मुंहासे और उदासी छाने लगती है। चेहरे का आकर्षण समाप्त होकर युवा असमय में ही वृध्द जैसा दिखाई देने लगता है।
एक बार मशहूर कामेडियन जार्ज बर्न्स से किसी ने पूछा कि चिंता पर विजय पाने का क्या तरीका है, तो उन्होंने उत्तर दिया, अगर कोई काम आपकी पहुंच से परे है तो उसके बारे में बेकार की चिंता करने का कोई औचित्य नहीं है। अगर आप किसी काम को ठीक से निभाने में सक्षम नहीं हैं तो उसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। उसमें अच्छा-बुरा समझने की शक्ति है। वह अपनी समस्याओं से अपने विवेक और सूझबूझ के द्वारा छुटकारा पाने की सामर्थ्य रखता है लेकिन जानवरों में इस तरह की क्षमता का अभाव होता है।
जब आप समस्याओं से घिर जायें तो अपने ऊपर नकारात्मक भावनाओं को हावी न होन दें। ऐसा करने से मनुष्य अपने होशो-हवास खो बैठता है। मान लीजिए कि आप किसी ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं जो आपको परेशान कर रही है और आप उसका तुरंत कोई उपाय नहीं खोज पा रहे हैं तो ऐसे समय में आपको चाहिए कि चिंताओं को भूलकर अपने मन को किसी दूसरी ओर लगा लेना चाहिए क्योंकि दूसरे कामों में मन लगाने से मूड में सुधार हो जाता है। ऐसे में मित्रों से गपशप लगायें या खेलें। अपनी समस्या के समाधान के लिये मित्रों से भी परामर्श ले सकते हैं। जब आपका उत्तेजित मस्तिष्क शांत हो जाये तो आप अपनी समस्या पर सोचें। चिंताएं अक्सर मिथ्या विश्वास के कारण भी पैदा होती है। ज्यादातर लोगों को, विशेषकर स्त्रियों को यह चिंता होती है कि सब लोग क्या कहेंगे? जग हंसाई होगी आदि। कोई भी व्यक्ति दोष रहित नहीं होता। दृढ़ता और समझदारी से चिंताओं पर विजय पाई जा सकती है। कुछ लोग अपनी चिंताओं से बेहद परेशान हो जाते हैं क्योंकि उसके परिणाम और खतरों को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर सोचते हैं। हमें अपनी समस्याओं से साहसिक और रचनात्मक ढंग से निपटना चाहिये।
आजकल चिंता और तनाव से मुक्ति की दवाएं भी उपलब्ध हैं। शुरू-शुरू में तो इनसे राहत मिल सकती है परन्तु स्थायी तौर पर मुक्ति नहीं मिलती। इसलिये कोशिश होनी चाहिये कि हम अपने दिल दिमाग को मजबूत बनायें जिससे चिंताओं पर काबू पा सकने में समर्थ हो सकें।
चिंता के मूल को समाप्त करना चाहिये। व्यायाम और दूसरी शारीरिक गतिविधियां, हल्का संगीत तथा ध्यान आदि से ही चिंता से तत्कालीन मुक्ति पाई जा सकती है। समस्याओं से जूझिये, घबराइये नहीं, सब ठीक हो जायेगा।
खैर, इस वास्तविकता को भी नकारा नहीं जा सकता कि चिंताओं से इस भौतिक युग में पीछा छुड़ाना मुश्किल है क्योंकि हमारी इच्छाएं और कार्यक्षेत्र इतना फैल गया है कि चिंताओं से बिल्कुल ही मुक्ति पा जाना तो कठिन है। मनुष्य को चिंताग्रस्त न रहकर उसका उपाय खोजना चाहिये। चिंताओं में घुलते रहने से हमारा स्वास्थ्य और आयु क्षीण होते हैं। मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययन के द्वारा यह तथ्य सामने आया है कि पुरुषों की तुलना में महिलायें समस्याओं से तीन गुणा ज्यादा चिंतित होती हैं। वे समाधान की ओर ध्यान नहीं देती, उल्टे समस्याओं की भयावहता के बारे में सोच-सोचकर परेशान रहती हैं। उनकी संघर्ष क्षमता, सहनशीलता और सोच बहुत कमजोर होती है। दूसरी तरफ ऐसे पुरुष जो भावुक, भीरू और कमजोर हृदय वाले होते हैं, वे समस्या के परिणाम के विपरीत विषय में ही सोचते हैं। नकारात्मक विचारों के कारण उनका मन मस्तिष्क और शरीर जर्जर हो जाता है और उनकी निर्णय क्षमता भी नष्ट होने लगती है। अत्यधिक चिंता का मानव शरीर पर बहुत बुरा और गहरा प्रभाव पड़ता है। इससे अनिद्रा, डायरिया, पेट की गड़बड़ी, मांसपेशियों में तनाव, मधुमेह, सिरदर्द तथा मानसिक तनाव जैसे रोग घेर लेते हैं। चिंता मनुष्य के स्वास्थ्य को ही नहीं बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी नष्ट भ्रष्ट कर देती है। असमय में ही सिर के बाल सफेद हो जाते हैं, चेहरे पर झुर्रियां, मुंहासे और उदासी छाने लगती है। चेहरे का आकर्षण समाप्त होकर युवा असमय में ही वृध्द जैसा दिखाई देने लगता है।
एक बार मशहूर कामेडियन जार्ज बर्न्स से किसी ने पूछा कि चिंता पर विजय पाने का क्या तरीका है, तो उन्होंने उत्तर दिया, अगर कोई काम आपकी पहुंच से परे है तो उसके बारे में बेकार की चिंता करने का कोई औचित्य नहीं है। अगर आप किसी काम को ठीक से निभाने में सक्षम नहीं हैं तो उसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। उसमें अच्छा-बुरा समझने की शक्ति है। वह अपनी समस्याओं से अपने विवेक और सूझबूझ के द्वारा छुटकारा पाने की सामर्थ्य रखता है लेकिन जानवरों में इस तरह की क्षमता का अभाव होता है।
जब आप समस्याओं से घिर जायें तो अपने ऊपर नकारात्मक भावनाओं को हावी न होन दें। ऐसा करने से मनुष्य अपने होशो-हवास खो बैठता है। मान लीजिए कि आप किसी ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं जो आपको परेशान कर रही है और आप उसका तुरंत कोई उपाय नहीं खोज पा रहे हैं तो ऐसे समय में आपको चाहिए कि चिंताओं को भूलकर अपने मन को किसी दूसरी ओर लगा लेना चाहिए क्योंकि दूसरे कामों में मन लगाने से मूड में सुधार हो जाता है। ऐसे में मित्रों से गपशप लगायें या खेलें। अपनी समस्या के समाधान के लिये मित्रों से भी परामर्श ले सकते हैं। जब आपका उत्तेजित मस्तिष्क शांत हो जाये तो आप अपनी समस्या पर सोचें। चिंताएं अक्सर मिथ्या विश्वास के कारण भी पैदा होती है। ज्यादातर लोगों को, विशेषकर स्त्रियों को यह चिंता होती है कि सब लोग क्या कहेंगे? जग हंसाई होगी आदि। कोई भी व्यक्ति दोष रहित नहीं होता। दृढ़ता और समझदारी से चिंताओं पर विजय पाई जा सकती है। कुछ लोग अपनी चिंताओं से बेहद परेशान हो जाते हैं क्योंकि उसके परिणाम और खतरों को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर सोचते हैं। हमें अपनी समस्याओं से साहसिक और रचनात्मक ढंग से निपटना चाहिये।
आजकल चिंता और तनाव से मुक्ति की दवाएं भी उपलब्ध हैं। शुरू-शुरू में तो इनसे राहत मिल सकती है परन्तु स्थायी तौर पर मुक्ति नहीं मिलती। इसलिये कोशिश होनी चाहिये कि हम अपने दिल दिमाग को मजबूत बनायें जिससे चिंताओं पर काबू पा सकने में समर्थ हो सकें।
चिंता के मूल को समाप्त करना चाहिये। व्यायाम और दूसरी शारीरिक गतिविधियां, हल्का संगीत तथा ध्यान आदि से ही चिंता से तत्कालीन मुक्ति पाई जा सकती है। समस्याओं से जूझिये, घबराइये नहीं, सब ठीक हो जायेगा।
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