Friday, August 17, 2012

हंसिए-हंसाइए, रोग दूर भगाइए

जीवन सुख-दुख, अनुकूल-प्रतिकूल, अच्छी-बुरी परिस्थितियों का मिला जुला रूप है। यहां सब कुछ इच्छानुसार नहीं होता। प्रतिकूलताएं आती-आती रहती हैं। जब जीवन में कठिनाइयां-असुविधाएं आती हैं तो मानसिक तनाव और शारीरिक थकान का पैदा होना स्वाभाविक है।

ऐसी स्थितियों में आत्मरक्षा का एक ही कारगर उपाय है- हर समय प्रसन्न रहने के लिए हंसने-मुस्काने का सहारा लिया जाए। हंसते-हंसाते रहने से विषम परिस्थितियों में भी जीवन की गाड़ी आसानी से आगे बढ़ जाती है।

निराशा, उदासी, खिन्नता को दूर करने और भारी मन को हल्का करने में हंसने-मुस्कराने से बढ़िया उपाय दूसरा नहीं है। इसके लिये स्वस्थ मनोरंजन, मनोविनोद, हंसी-खुशी के प्रसंगों को अपनी दिनचर्या में अधिक से अधिक स्थान देना आवश्यक है। ईश्वर ने सभी प्राणियों में मनुष्य को हंसने-मुस्कराने की विशेषता प्रदान कर उसे श्रेष्ठ उपहार दिया है।

जीवन शक्ति को बढ़ाने, मन को प्रसन्नचित्त रखने, तनाव से मुक्ति दिलाने में हास्य बहुत सहायक है। प्रसन्नचित्त व्यक्ति जितने उन्नत, सुखी और शांत देखे जाते हैं, उतने उदास, खिन्न, मनहूस नहीं। प्रसन्न व्यक्तियों की बुध्दि अधिक तीव्र और विचार अधिक स्थिर होते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों, परेशानियों को झेलने में अधिक समर्थ होते हैं।

रोगी के लिये भी हंसना व प्रसन्नचित रहना बहुत आवश्कता है। जो प्रसन्नचित्त और मुस्कराते रहते हैं, उन पर दवाइयों का असर भी तेजी से होता है और वे शीघ्र ही स्वस्थ हो जाते हैं। ठहाका लगाकर हंसने वालों का पाचन संस्थान अधिक तेजी से कार्य करता है।र् ईष्या, द्वेष, भय, उत्तेजना, क्रोध और चिंता जैसे मनोविकारों के कारण अथवा शारीरिक रोगों के फलस्वरूप शरीर में जो विष उत्पन्न हो जाते हैं, उनके निष्कासन में हंसना बहुत ही सहायक होता है।

प्रसन्न रहने व मुस्कराते रहने के लिए आवश्यक नहीं कि धन, संपत्ति और बहुमूल्य साधन सुविधाएं ही हों। मात्र विचार करने की शैली में परिवर्तन और दृष्टिकोण का सही रखना अत्यन्त आवश्यक है। हंसने मुस्कराने से मन हल्का होता है, ताजगी और स्फूर्ति बनी रहती है।

जिस प्रकार वृक्ष की जड़ में पानी देने से पत्तियां, फूल, तना और सभी अंग पोषक तत्व प्राप्त कर लेते हैं उसी प्रकार हंसने मुस्कराने से शरीर के अंग-अवयवों की सक्रियता और स्फूर्ति भी बढ़ जाती है। यह स्वास्थ्य के लिये महौषधि है।

हंसना, मुस्कराना, प्रसन्न रहना अपने स्वास्थ्य के लिये ही नहीं, घर-परिवार, मित्र, पड़ोसी सभी की प्रसन्नता के लिये बहुत आवश्यक है। इसमें कुछ खर्च नहीं होता, वरन मिलनसारिता और आत्मीयता बढ़ती है तथा स्वस्थ और स्फूर्ति रहा जा सकता है। इसलिए हमें यही प्रयास करते रहना चाहिये कि सदैव हंसते-मुस्कराते बने रहकर प्रसन्न रहा जाय। जो प्रसन्न रहते हैं वास्तव में वे ही सुखी हैं।



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