ज्यों-ज्यों सभ्यता के विकास के साथ जीवन की व्यस्तता बढ़ती जा रही है,
त्यों-त्यों तनाव उत्पन्न करने वाले कारक भी बढ़ते जा रहे हैं। तनाव कई
प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों का कारण माना जाता है। अतः तनाव से
मुक्ति पाने के कुछ उपायों पर चर्चा करना निश्चित रूप से लाभदायक होगा।
तिरुवनन्तपुरम में श्री शेषन नामक विद्वान ने अपने एक भाषण में बताया कि जब किसी के प्रति हमारे मन में क्रोध उत्पन्न होता है तो उसे प्रकट करने में हम प्रायः असमर्थ रह जाते हैं। क्रोध प्रकट करते हैं कटु वचन कहकर, गाली देकर या मारपीट करके। इन सबके परिणाम हमारे लिए अधिक दुःख उत्पन्न करने वाले हो सकते हैं, इसलिए हम बहुधा ऐसे आचरणों से बचना चाहते हैं।
यद्यपि क्रोध को बाहरी आचरण द्वारा प्रकट नहीं करते तो भी क्रोध मन में बना रहता है और समय के बीतते-बीतते यह बैर का रूप धारण कर लेता है। यह ज्यादा गहरा हो जाता है और इसे उखाड़ फेंकना अधिक कठिन हो जाता है।
वैर का लक्षण क्या है? कैसे हम समझ पायेंगे कि हमारे मन में किसी के प्रति वैर छिपा हुआ है? इस संबंध में महात्मा गौतम बुध्द की यह उक्ति बहुत प्रासंगिक लगती है।
अककोछिमं, अवधिमं, अजिनिमं, अहासिमं, येतन्ने पन्हचन्ति
वैरं तेसु न सम्मति- (धम्मपद)
यदि किसी व्यक्ति के संबंध में सोचते ही हमारे मन में यह विचार आये कि उसने मुझे मारा, सताया, मेरा उपहास किया तो निश्चित मानिए कि हमारे मन में उसके प्रति वैर बना हुआ है। जब तक मन की यह प्रवृत्ति बनी रहेगी, तब तक उस व्यक्ति के प्रति हमारा वैर नहीं मिट सकता।
संभव है कि उस व्यक्ति ने कभी हमारा उपकार भी किया होगा और हमारे मन में रूढ़ मूल वैर उसकी याद को ही भुला देता है। यदि उसके किए उपकार का याद आए तो वैर अपने आप क्षीण हो जायेगा?
मेरे एक मित्र हैं डा. मुरलीधरन तंपी जो केरल कृषि विश्वविद्यालय में विज्ञान के प्रोफेसर और निदेशक रहे। वे सेवानिवृत्ति के बाद मनोविज्ञान संबंधी अध्ययन व लेखन में लगे हुए हैं। सन्मनस नामक अपनी मलयालम पुस्तक की एक प्रति मुझे भेंट करते हुए उन्होंन कहा, तनाव का मुख्य कारण हमारे मन के नकारात्मक सोच है। यानी क्रोध, विद्वेष, वैर,र् ईष्या, शोक, मोह, मद, मत्सर इत्यादि इनका प्रतिस्थापन यदि सकारात्मक सोच से कर सकेंगे तो तनाव से मुक्ति अवश्य मिलेगी।
कैसे पता चलेगा कि हमारे मन में निगेटिव थाट्स ज्यादा हैं या पॉजिटिव थाट्स ज्यादा हैं? पुट्टपर्ती में जो भगवान सत्यसाई बाबा थे, उनके आश्रम में, उनके जीवनकाल में दो-तीन बार जाने का सुअवशर मुझे मिला है।
आश्रम में एक दीवार पर एक घड़ी के चित्र के समीप लिखा था-वाच युअर थाट्स, वाच युवर वड्र्स, वाच युवट एक्शन। यानी अपने-अपने चिन्तन पर, अपनी वाणी पर और अपने कर्मों पर निगरानी रखो। बहुधा हम दूसरों के चिन्तन की, दूसरों का वाणी की, दूसरों के कर्मों की आलोचना किया करते हैं। अपने चिन्तन, वाणी और कर्म का न हम निरीक्षण करते हैं न उनकी आलोचना करते हैं। यदि थोड़ा समय हम अपने अन्दर मुड़कर भी देखें तो अपने मन में पनप रहे निगेटिव थाट्स का पता लगा पायेगा। महात्मा कबीर का कथन भी यहां स्मरणीय है-
बालन कहा बिगरिया, जो मूंडो बार बार?
मन को क्यों नहीं मूंडिए, जा में विषय विकार?
उस्तरे या ब्लेड से सिर का और मुख का मुंडन करना तो आसान है। मन का मुंडन कैसे करें? यही योग-ध्यान हमारी सहायता कर सकता है। प्रतिदिन किसी निश्चित स्थान पर, निश्चित समय पर किसी सुविधापूर्ण आसन पर बैठकर करीब बीस मिनट तक ध्यान का अभ्यास करें तो हमें अपने मन के अन्दर के विकारों के स्पष्ट दर्शन मिल सकते हैं। मन में स्ेह, दया, करुणा, क्षमा, मुदिता जैसे पॉजिटिव थाट्स लाएं तो उसी के साथ निगेटिव थाट्स मिटते जायेंगे? प्रकाश के फैलने पर अंधकार दूर हो ही जाती है।
तिरुवनन्तपुरम में श्री शेषन नामक विद्वान ने अपने एक भाषण में बताया कि जब किसी के प्रति हमारे मन में क्रोध उत्पन्न होता है तो उसे प्रकट करने में हम प्रायः असमर्थ रह जाते हैं। क्रोध प्रकट करते हैं कटु वचन कहकर, गाली देकर या मारपीट करके। इन सबके परिणाम हमारे लिए अधिक दुःख उत्पन्न करने वाले हो सकते हैं, इसलिए हम बहुधा ऐसे आचरणों से बचना चाहते हैं।
यद्यपि क्रोध को बाहरी आचरण द्वारा प्रकट नहीं करते तो भी क्रोध मन में बना रहता है और समय के बीतते-बीतते यह बैर का रूप धारण कर लेता है। यह ज्यादा गहरा हो जाता है और इसे उखाड़ फेंकना अधिक कठिन हो जाता है।
वैर का लक्षण क्या है? कैसे हम समझ पायेंगे कि हमारे मन में किसी के प्रति वैर छिपा हुआ है? इस संबंध में महात्मा गौतम बुध्द की यह उक्ति बहुत प्रासंगिक लगती है।
अककोछिमं, अवधिमं, अजिनिमं, अहासिमं, येतन्ने पन्हचन्ति
वैरं तेसु न सम्मति- (धम्मपद)
यदि किसी व्यक्ति के संबंध में सोचते ही हमारे मन में यह विचार आये कि उसने मुझे मारा, सताया, मेरा उपहास किया तो निश्चित मानिए कि हमारे मन में उसके प्रति वैर बना हुआ है। जब तक मन की यह प्रवृत्ति बनी रहेगी, तब तक उस व्यक्ति के प्रति हमारा वैर नहीं मिट सकता।
संभव है कि उस व्यक्ति ने कभी हमारा उपकार भी किया होगा और हमारे मन में रूढ़ मूल वैर उसकी याद को ही भुला देता है। यदि उसके किए उपकार का याद आए तो वैर अपने आप क्षीण हो जायेगा?
मेरे एक मित्र हैं डा. मुरलीधरन तंपी जो केरल कृषि विश्वविद्यालय में विज्ञान के प्रोफेसर और निदेशक रहे। वे सेवानिवृत्ति के बाद मनोविज्ञान संबंधी अध्ययन व लेखन में लगे हुए हैं। सन्मनस नामक अपनी मलयालम पुस्तक की एक प्रति मुझे भेंट करते हुए उन्होंन कहा, तनाव का मुख्य कारण हमारे मन के नकारात्मक सोच है। यानी क्रोध, विद्वेष, वैर,र् ईष्या, शोक, मोह, मद, मत्सर इत्यादि इनका प्रतिस्थापन यदि सकारात्मक सोच से कर सकेंगे तो तनाव से मुक्ति अवश्य मिलेगी।
कैसे पता चलेगा कि हमारे मन में निगेटिव थाट्स ज्यादा हैं या पॉजिटिव थाट्स ज्यादा हैं? पुट्टपर्ती में जो भगवान सत्यसाई बाबा थे, उनके आश्रम में, उनके जीवनकाल में दो-तीन बार जाने का सुअवशर मुझे मिला है।
आश्रम में एक दीवार पर एक घड़ी के चित्र के समीप लिखा था-वाच युअर थाट्स, वाच युवर वड्र्स, वाच युवट एक्शन। यानी अपने-अपने चिन्तन पर, अपनी वाणी पर और अपने कर्मों पर निगरानी रखो। बहुधा हम दूसरों के चिन्तन की, दूसरों का वाणी की, दूसरों के कर्मों की आलोचना किया करते हैं। अपने चिन्तन, वाणी और कर्म का न हम निरीक्षण करते हैं न उनकी आलोचना करते हैं। यदि थोड़ा समय हम अपने अन्दर मुड़कर भी देखें तो अपने मन में पनप रहे निगेटिव थाट्स का पता लगा पायेगा। महात्मा कबीर का कथन भी यहां स्मरणीय है-
बालन कहा बिगरिया, जो मूंडो बार बार?
मन को क्यों नहीं मूंडिए, जा में विषय विकार?
उस्तरे या ब्लेड से सिर का और मुख का मुंडन करना तो आसान है। मन का मुंडन कैसे करें? यही योग-ध्यान हमारी सहायता कर सकता है। प्रतिदिन किसी निश्चित स्थान पर, निश्चित समय पर किसी सुविधापूर्ण आसन पर बैठकर करीब बीस मिनट तक ध्यान का अभ्यास करें तो हमें अपने मन के अन्दर के विकारों के स्पष्ट दर्शन मिल सकते हैं। मन में स्ेह, दया, करुणा, क्षमा, मुदिता जैसे पॉजिटिव थाट्स लाएं तो उसी के साथ निगेटिव थाट्स मिटते जायेंगे? प्रकाश के फैलने पर अंधकार दूर हो ही जाती है।
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