Saturday, February 11, 2012

आत्म विकास और नैतिकता

आदर्श आचरण की अवधारणा ही नैतिकता है। शब्दकोष में नैतिकता का अर्थ है सदाचार एवं आदर्श जीवन पध्दति। नैतिकतापूर्ण जीवन का संकल्प लेने वाला स्वत: जीवन में सहज, सुख शांति के मार्ग पर अग्रसर होता है। इसी प्रकार अनैतिक आचरण जीवन के उच्चतम आदर्शों से पतन का कारण बनता है। सत्य प्रेम, न्याय तथा शांति को ध्येय मानकर चलने वाले व्यक्ति की नैतिकता ही आदर्श नैतिकता कही जा सकती है। श्रेष्ठ का स्वीकार और अधम के त्याग की भावना ही हमें लक्ष्य तक पहुंचा सकती है।
नैतिकता के अनेक आयाम हो सकत हैं- व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनैतिक। नैतिकता का रूप बदल सकता है। अनुपयोगी, जर्जर मूल्यों, मानदंडों के स्थान पर नवीन उपयोगी मूल्य स्थापित होते रहते हैं।
भारतीय परिवेश में नैतिकता धर्म से जुड़ी हुई है किन्तु आधुनिक जीवन में समाज के लिये कैसी नैतिकता चाहिये? इस पर लोगों के अलग-अलग विचार होंगे, पर जीवन में परस्पर प्रेम, सौहार्द्र, समन्वय तथा सामंजस्य की स्वीकृति प्रमुख रूप से सदा ही होती रही है।
नैतिकता की राह हमें निश्चय ही आत्मविकास, आत्मशोधन की मंजिल की ओर ले जाती है। जीवन के चरमलक्ष्य को पाने के लिये अन्य कोई मार्ग नहीं है। इसी से हर युग में ऋषियों ने नीति एवं नैतिकता को अनेक रूपों में परिभाषित कर समझाया है, ताकि सहज ही जीवन के इन उच्चतम मूल्यों को समाज में उचित स्थान मिलता रहे और जीवन पतन से बचता रहे।
भारतीय साहित्य नैतिकता के आख्यानों का भंडार है साथ ही समस्त संसार में मानव समाज ने जीवन के आदर्श मूल्यों को स्वीकृति दी है।
आत्म ज्ञान तथा आत्म विकास के लिये संकल्प लेने वाला कभी अपने आदर्श की अवहेलना नहीं करता, प्रत्युत जीवन के पल-पल का उपयोग कर वह उससे सुअवसर का लाभ उठाता रहता है, क्योंकि बिना नैतिक आचरण के आत्मविकास संभव ही नहीं है तो बिना आत्म ज्ञान, अभ्युदय के सुख तथा शांति की कल्पना भी व्यर्थ है। अस्तु मानव जीवन के अनमोल संयोग सुअवसर के सावधानी से लक्ष्य पर केंद्रित करके ही आत्मोन्नति के शिखर चढ़े जा सकते हैं। जीवन का यह परम सदुपयोग होगा। नैतिकता अवधारणा को उच्च आचरण-व्यवहार में लाकर ही उसकी उपलब्धि की अनुभूति संभव है। आचार संबंधी बातें, व्याख्यानों में तो होती ही रहती हैं।
अच्छे पथ पर अनुसरण तथा गलत रास्ते का त्याग जीवन की प्रथम शिक्षा का मूलमंत्र रहा है। माता-पिता एवं गुरु को देवता समान आदन देने की शिक्षा, नैतिकता की प्रारंभिक सीख है। बचपन के मन में डाले गये संस्कार के बीज फूलन-फलने पर मीठे फल ही देते हैं।
आधुनिक समय की भाग दौड़ और व्यस्तता में नैतिक मूल्यों की बातें सुनने का अवकाश कहां? किन्तु हमारे जीवन में जो इन मूल्यों की धरोहर है उसे नष्ट होने देना ठीक नहीं है, इसीलिए सावधानी से उच्च विचारों, आदर्शों को आचरित करते रहने से ही वे जीवित रह सकते हैं। इससे हम निरंतर अंधकार से आलोक की ओर बढ़ने का मार्ग पायेंगे।
जो जीवन में उत्तम लक्ष्य चुनता है, गलत आदतों के प्रति उदासीन रहता है, सत्य-प्रेम के मार्ग को नहीं छोड़ता उसे कोई भय नहीं रहता और वह अपने लक्ष्य से कभी भटकता नहीं।
नैतिकता का दर्शन आत्म ज्ञान का दर्शन है। इसकी अवधारणायें अनेक हैं किन्तु असल बात है नैतिकतापूर्ण मूल्यों को जीवन में उतारना। मनुष्य को अपने विवेक के अनुसार उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति का अवसर गंवाना नहीं चाहिये। सद्गति के लिये तो यही पथ है।

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