मासूम चेहरे की उदासी दु:ख, तनाव तथा चिड़चिड़ेपन को प्रकट करती है। बच्चों के कोमल मन पर परिवेश का सीधा असर पड़ता है। घर आंगन में गूंजती बच्चों की किलकारी डर से चुप हो जाती है जिससे उनका मानसिक तनाव बढ़ता है।
बच्चों के मन पर घर के परिवेश का असर सदा ही बना रहता है और उनके विचारों को प्रभावित करता है। जहां पर पति-पत्नी नौकरी करते हैं, वे अपने बच्चों को बहुत कम समय दे पाते हैं। थके, हारे पति-पत्नी घर लौटते हैं तो वातावरण तनाव से परिपूर्ण होता है। इसी कारण आपसी कलह क्लेश झगड़े का रूप धारण कर लेता है जिसे बच्चे देखते हैं।
कुछ पिता ऐसे भी हैं जो दफ्तर से लौटते वक्त नशे में चूर होकर आते हैं। यदि बच्चे कॉपी, पेंसिल कुछ मांगते हैं उन्हें बदले में मारपीट मिलती है। ऐसे परिवेश में बच्चों की कोमल भावनाएं बहुत आहत होती हैं। यदि बच्चों के हंसने-खेलने पर रोक लगा दी जाये तो वे तनाव और घुटन भरे परिवेश में जीवन गुजारते हैं।
कुछ बच्चे माता-पिता की नियमित पिटाई को सहते हुए दब्बू एवं डरपोक बन जाते हैं। वे जीवन में सदा ही असफल होते जाते हैं। यदि बच्चों को हर समय प्रताड़ित किया जाता है तो वे सदा के लिए हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। रिश्तेदारों एवं मित्रों के सामने लज्ज्ाित करना बच्चों में तनाव के रोग को जन्म देता है।
अक्सर तनावयुक्त बच्चे सहमे-सहमे से अलग ही बैठे नजर आयेंगे। कुछ बच्चे नाखूनों को डर के मारे चबाना शुरू कर देते हैं। देखने में आया है कि हाफपैंट में भी बच्चे पेशाब कर देते हैं। ऐसा ही दबाव किशोरावस्था में बना रहता है। बच्चों के मन में दूसरों की तारीफ सुनकर चिढ़ होती है। उनके आत्म सम्मान को ठेस लगती है। यदि उन्हें कोई प्रोत्साहित न करे तो वे सदा-सदा के लिए कुंठित भावना का शिकार हो जाते हैं। बच्चे ज्यादा काम और काम की बात सुनकर जिद्दी बन जाते हैं। वे काम से भी मन चुराने लगते हैं।
प्यार और दुलार के परिवेश से बच्चों को तनाव से मुक्त रखा जा सकता है। बच्चों को प्रोत्साहित करते रहें। उनकी योग्यता को बढ़ाने के लिए उनके काम की प्रशंसा करें। धन कमाने के साथ-साथ बच्चों का चरित्र निर्माण करने के सही समय को भी पहचानें।
बच्चों को दें ऐसा परिवेश
1) पति-पत्नी के झगड़ों से बच्चों को सदा दूर रखें। बच्चों में एक पक्ष की तरफदारी से तनाव बढ़ता है।
2) नशीले पदार्थों के सेवन करने की आदत को घर के परिवेश से दूर रखें। मारपीट की बुरी आदतों को त्याग कर अच्छे माता-पिता का दायित्व निभाएं।
3) बच्चों के लिए पढ़ाई-लिखायी का परिवेश बनाएं।
4) माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी चिल्लाने की आदत को छोड़ दें। इससे बच्चों में डिप्रेशन एवं तनाव नहीं बढ़ेगा।
5) बच्चों को नियमित रूप से खेलने एवं हंसने का अवसर दें। दबाव के कारण बच्चों की बुध्दि का विकास नहीं होता।
6) बच्चों को झूठे वादे करके भ्रमित न करें।
7) दिन में एक समय अवश्य एक साथ भोजन करें
8) तनावपूर्ण वातावरण से कोई भी सुकून नहीं पा सकता।
poori trah sahmat hun..... Bahut achha aalekh...Dhanywad
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