मासूम चेहरे की उदासी दु:ख, तनाव तथा चिड़चिड़ेपन को प्रकट करती है। बच्चों के कोमल मन पर परिवेश का सीधा असर पड़ता है। घर आंगन में गूंजती बच्चों की किलकारी डर से चुप हो जाती है जिससे उनका मानसिक तनाव बढ़ता है।
बच्चों के मन पर घर के परिवेश का असर सदा ही बना रहता है और उनके विचारों को प्रभावित करता है। जहां पर पति-पत्नी नौकरी करते हैं, वे अपने बच्चों को बहुत कम समय दे पाते हैं। थके, हारे पति-पत्नी घर लौटते हैं तो वातावरण तनाव से परिपूर्ण होता है। इसी कारण आपसी कलह क्लेश झगड़े का रूप धारण कर लेता है जिसे बच्चे देखते हैं।
कुछ पिता ऐसे भी हैं जो दफ्तर से लौटते वक्त नशे में चूर होकर आते हैं। यदि बच्चे कॉपी, पेंसिल कुछ मांगते हैं उन्हें बदले में मारपीट मिलती है। ऐसे परिवेश में बच्चों की कोमल भावनाएं बहुत आहत होती हैं। यदि बच्चों के हंसने-खेलने पर रोक लगा दी जाये तो वे तनाव और घुटन भरे परिवेश में जीवन गुजारते हैं।
कुछ बच्चे माता-पिता की नियमित पिटाई को सहते हुए दब्बू एवं डरपोक बन जाते हैं। वे जीवन में सदा ही असफल होते जाते हैं। यदि बच्चों को हर समय प्रताड़ित किया जाता है तो वे सदा के लिए हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। रिश्तेदारों एवं मित्रों के सामने लज्ज्ाित करना बच्चों में तनाव के रोग को जन्म देता है।
अक्सर तनावयुक्त बच्चे सहमे-सहमे से अलग ही बैठे नजर आयेंगे। कुछ बच्चे नाखूनों को डर के मारे चबाना शुरू कर देते हैं। देखने में आया है कि हाफपैंट में भी बच्चे पेशाब कर देते हैं। ऐसा ही दबाव किशोरावस्था में बना रहता है। बच्चों के मन में दूसरों की तारीफ सुनकर चिढ़ होती है। उनके आत्म सम्मान को ठेस लगती है। यदि उन्हें कोई प्रोत्साहित न करे तो वे सदा-सदा के लिए कुंठित भावना का शिकार हो जाते हैं। बच्चे ज्यादा काम और काम की बात सुनकर जिद्दी बन जाते हैं। वे काम से भी मन चुराने लगते हैं।
प्यार और दुलार के परिवेश से बच्चों को तनाव से मुक्त रखा जा सकता है। बच्चों को प्रोत्साहित करते रहें। उनकी योग्यता को बढ़ाने के लिए उनके काम की प्रशंसा करें। धन कमाने के साथ-साथ बच्चों का चरित्र निर्माण करने के सही समय को भी पहचानें।
बच्चों को दें ऐसा परिवेश
1) पति-पत्नी के झगड़ों से बच्चों को सदा दूर रखें। बच्चों में एक पक्ष की तरफदारी से तनाव बढ़ता है।
2) नशीले पदार्थों के सेवन करने की आदत को घर के परिवेश से दूर रखें। मारपीट की बुरी आदतों को त्याग कर अच्छे माता-पिता का दायित्व निभाएं।
3) बच्चों के लिए पढ़ाई-लिखायी का परिवेश बनाएं।
4) माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी चिल्लाने की आदत को छोड़ दें। इससे बच्चों में डिप्रेशन एवं तनाव नहीं बढ़ेगा।
5) बच्चों को नियमित रूप से खेलने एवं हंसने का अवसर दें। दबाव के कारण बच्चों की बुध्दि का विकास नहीं होता।
6) बच्चों को झूठे वादे करके भ्रमित न करें।
7) दिन में एक समय अवश्य एक साथ भोजन करें
8) तनावपूर्ण वातावरण से कोई भी सुकून नहीं पा सकता।
Sunday, October 31, 2010
Thursday, October 28, 2010
आत्महत्या से बचने के उपाय
आज के दौर की देन है डिप्रेशन या अवसाद जो लोगों को आत्मघात या आत्महत्या की तरफ ले जाता है। बच्चे, बड़े और बूढ़े, सभी उम्र के लोग आत्महत्या कर बैठते हैं जो सामाजिक और कानूनी अपराध माना जाता है।
बच्चों पर स्कूल और अध्ययन का बहुत बोझ होता है। गरीबी, असफलता,र् ईष्या और दुख आत्महत्या या डिप्रेशन की तरफ ले जाते हैं। गरीबी अकर्मण्यता से आती है, असफलता निकम्मेपन से आती है और दुख दुष्कर्मों से आते हैं।
बूढ़े लोग रोग एवं पश्चाताप या परिवार में परित्याग भाव या सेवा भाव की कमी के कारण आत्महत्या करते हैं। बहुएं ससुराल वालों से तंग आकर आत्मदाह करती है।
जो लोग आत्महत्या करते हैं, वे या तो दूसरों को मजा चखाने के लिए आत्महत्या करते हैं या सहानुभूति या सहायता पाने की इच्छा से आत्महत्या करते हैं। जब सहायता को कोई नहीं पहुंच पाता तो उतनी देर में काम तमाम हो जाता है।
एक होस्टल में एक छात्र को बहुत से मित्र तंग करते थे। एक बार उसने रस्सी गले में डालकर पंखे से लटककर मरना चाहा तो रस्सी टूट गयी। वह बच गया। दूसरों ने बचा लिया। दूसरी बार उसने दोबारा कोशिश की, तब वह सचमुच चल बसा।
एक पुत्र अपने पिता को होरो होण्डा लेने की जिद करता था। पिता अध्यापक थे। उनकी हैसियत नहीं थी कि बेटे की इच्छा पूरी कर सकें। एक दिन पुत्र ने पिता को धमकी दी कि वे उसकी इच्छा पूरी करें अन्यथा वह मिट्टी का तेल डालकर आत्मदाह कर लेगा। पिता की असहमति के कारण वह सचमुच अपने ऊपर तेल डालकर तीली लगा बैठा कि पिता बचा लेंगे लेकिन जब तक पिता सहायता करने पहुंचते, तब तक किस्सा तमाम हो गया।
दु:खी व्यक्ति प्राय: आत्महत्या से पहले कहते जरूर हैं, तेरी दुनियां में जीने से बेहतर है कि मर जाएं, 'ऐसे जीवन से मरना अच्छा' या वे पूछते फिरते हैं कि कितनी गोली खाने से आदमी मर जाता है। वह प्राय: एकाकी जीवन जीता है और सबसे नाता तोड़ने की कोशिश करता है। कई परिवारों का इतिहास होता है कि जीन या क्रोमोसोम्ज में आत्महत्या के लक्षण होते हैं। सभी सदस्य पागल होकर आत्महत्या से जीवन समाप्त कर लेते हैं।
भावुक लोग थोड़ी सी असफलता से विचलित होकर यह पग उठा लेते हैं और दुनिया से कूच कर जाते हैं।
शराबी या नशेड़ी भी अवसाद के कारण मरना पसंद कर लेते हैं। कर्ज लेकर मरने की खबरें प्राय: छपती रहती हैं। शादी के बाद दूसरी स्त्रियों से संबंध रखने वाले लोगों के पकड़े जाने पर उनको आत्महत्या का मार्ग सरल जान पड़ता है।
आत्महत्या का आवेग आने पर यदि रोगी मित्र या दूसरे व्यक्ति द्वारा बचा लिया जाता है तो वह उसकी ऐसे ऋणी हो जाता है जैसे किसी को एक भयंकर दुर्घटना से बचा लिया गया हो।
प्राय: लोग आत्महत्या करने से पहले संकेत जरूर दे देते हैं। बातों-बातों में लेकिन हर आत्महत्या करने वाला यह जरूर आशा रखता है कि वह बचा लिया जाए। यदि कोई समय पर नहीं पहुंचता तो उसे मजबूरन मरना पड़ता है। यह एक मानसिक आवेग है। कई लोग संभल जाते हैं और बच जाते हैं।
धनी व्यक्ति ज्यादा आत्महत्या करते पाए जाते हैं। धन का आना या जाना दोनों आत्मघात के कारण बन जाते हैं। कई बार आत्महत्या करना वंशानुगत होता है।
आत्महत्या से बचने के अचूक नुस्खे :-
* अपनी भूलों को मान जाइए। इनको दूर करें। घमंड का परित्याग करें। अपनी आलोचना स्वयं करें। दूसरों को सुख देकर अपने दुख भूल जाइये।
* यदि भाग्य में खटास मिले तो उसे मिठास में बदलें। अंधेरे को कोसने की बजाए एक दीया जला लें। दूसरों की नकल मत करें। जो है वहीं बने रहे। दिखावा मत करें।
* ईश्वर की नियामतों को याद रखें। जो आपके पास नहीं है, उसका रोना मत रोएं। जैसे के साथ-तैसा मत करें। क्षमाशील बनें।
* अपने दिमाग में आशावादी, साहस, स्वास्थ्य, शांति की विचार लहरियां आने दें। होनी से लड़िये मत। जो होना है, उसके लिये तैयार रहें। चिंता मत करें।
* आज की परिधि में जियें। कल परसों या बीते समय का रोना मत रोएं। अपने निर्णय खुद लें।
* ईश्वर में विश्वास रखें। उसने आपको धरती पर किसी विशेष कार्य को सम्पन्न करने को भेजा है। अपनी निष्क्रियता से निकम्मे मत बनें।
* झूठे सपने देखना छोड़ दें। समय और मन की शक्ति को पहचानें। जो भी कार्य करें, लगन व परिश्रम से।
* अच्छी व प्रेरणादायक पुस्तकें जरूर पढ़ें। घर में अच्छी पुस्तकों की लाइब्रेरी बनाए जिनसे आपको जीने की प्रेरणा मिलेगी।
* भाग्य के भरोसे मत बैठें। भाग्य नाम की वस्तु दुनिया में कमजोर और निकम्मे लोगों के लिये है। विवेक से काम लें। जोश में होश मत खोएं।
* धन का सदुपयोग करें। शादी-विवाह या व्यर्थ लेन-देन में पैसा व्यर्थ मत गवाएं। नशा छोड़ दें। नशा नाश कर देता है।
* विपक्षी का धैर्य, साहस, हिम्मत से मुकाबला करें। धन प्राप्त करने के गलत रास्ते मत अपनाएं। किसी की सम्पति पर नजर मत रखें। लोभ, लालच व चोरी मत करें।
* स्वयं खुश रहें और दूसरों को भी रखें। लड़ने वाली बातों और गुस्से से दूर रहें। राई का पहाड़ मत बनाए परन्तु पहाड़ की राई बना डालें। अपना दुखड़ा दूसरों के सामने मत रोएं। दूसरों के दुख में खुशी मत मनाएं।
* अंधविश्वासी मत बनें। दूसरों की गलत बातें मत मानें। ठीक को ठीक और गलत को गलत मान कर चलें। न दूसरों को धोखा दें, न ही खाएं। मूर्ख, दुष्ट, धोखेबाज एवं छली कपटी लोगों से दूर रहने की चेष्टा करें।
* ईश्वर ने हमें सुंदर शरीर दिया है। इसको स्वस्थ रखें। इसे चिंता, बीमारी से बचाएं। इसे नशे एवं कुसंगत से बचाएं। इसे अपनी क्षमता से दुनिया में अद्वितीय बनाए क्योंकि हर व्यक्ति विलक्षण है।
बच्चों पर स्कूल और अध्ययन का बहुत बोझ होता है। गरीबी, असफलता,र् ईष्या और दुख आत्महत्या या डिप्रेशन की तरफ ले जाते हैं। गरीबी अकर्मण्यता से आती है, असफलता निकम्मेपन से आती है और दुख दुष्कर्मों से आते हैं।
बूढ़े लोग रोग एवं पश्चाताप या परिवार में परित्याग भाव या सेवा भाव की कमी के कारण आत्महत्या करते हैं। बहुएं ससुराल वालों से तंग आकर आत्मदाह करती है।
जो लोग आत्महत्या करते हैं, वे या तो दूसरों को मजा चखाने के लिए आत्महत्या करते हैं या सहानुभूति या सहायता पाने की इच्छा से आत्महत्या करते हैं। जब सहायता को कोई नहीं पहुंच पाता तो उतनी देर में काम तमाम हो जाता है।
एक होस्टल में एक छात्र को बहुत से मित्र तंग करते थे। एक बार उसने रस्सी गले में डालकर पंखे से लटककर मरना चाहा तो रस्सी टूट गयी। वह बच गया। दूसरों ने बचा लिया। दूसरी बार उसने दोबारा कोशिश की, तब वह सचमुच चल बसा।
एक पुत्र अपने पिता को होरो होण्डा लेने की जिद करता था। पिता अध्यापक थे। उनकी हैसियत नहीं थी कि बेटे की इच्छा पूरी कर सकें। एक दिन पुत्र ने पिता को धमकी दी कि वे उसकी इच्छा पूरी करें अन्यथा वह मिट्टी का तेल डालकर आत्मदाह कर लेगा। पिता की असहमति के कारण वह सचमुच अपने ऊपर तेल डालकर तीली लगा बैठा कि पिता बचा लेंगे लेकिन जब तक पिता सहायता करने पहुंचते, तब तक किस्सा तमाम हो गया।
दु:खी व्यक्ति प्राय: आत्महत्या से पहले कहते जरूर हैं, तेरी दुनियां में जीने से बेहतर है कि मर जाएं, 'ऐसे जीवन से मरना अच्छा' या वे पूछते फिरते हैं कि कितनी गोली खाने से आदमी मर जाता है। वह प्राय: एकाकी जीवन जीता है और सबसे नाता तोड़ने की कोशिश करता है। कई परिवारों का इतिहास होता है कि जीन या क्रोमोसोम्ज में आत्महत्या के लक्षण होते हैं। सभी सदस्य पागल होकर आत्महत्या से जीवन समाप्त कर लेते हैं।
भावुक लोग थोड़ी सी असफलता से विचलित होकर यह पग उठा लेते हैं और दुनिया से कूच कर जाते हैं।
शराबी या नशेड़ी भी अवसाद के कारण मरना पसंद कर लेते हैं। कर्ज लेकर मरने की खबरें प्राय: छपती रहती हैं। शादी के बाद दूसरी स्त्रियों से संबंध रखने वाले लोगों के पकड़े जाने पर उनको आत्महत्या का मार्ग सरल जान पड़ता है।
आत्महत्या का आवेग आने पर यदि रोगी मित्र या दूसरे व्यक्ति द्वारा बचा लिया जाता है तो वह उसकी ऐसे ऋणी हो जाता है जैसे किसी को एक भयंकर दुर्घटना से बचा लिया गया हो।
प्राय: लोग आत्महत्या करने से पहले संकेत जरूर दे देते हैं। बातों-बातों में लेकिन हर आत्महत्या करने वाला यह जरूर आशा रखता है कि वह बचा लिया जाए। यदि कोई समय पर नहीं पहुंचता तो उसे मजबूरन मरना पड़ता है। यह एक मानसिक आवेग है। कई लोग संभल जाते हैं और बच जाते हैं।
धनी व्यक्ति ज्यादा आत्महत्या करते पाए जाते हैं। धन का आना या जाना दोनों आत्मघात के कारण बन जाते हैं। कई बार आत्महत्या करना वंशानुगत होता है।
आत्महत्या से बचने के अचूक नुस्खे :-
* अपनी भूलों को मान जाइए। इनको दूर करें। घमंड का परित्याग करें। अपनी आलोचना स्वयं करें। दूसरों को सुख देकर अपने दुख भूल जाइये।
* यदि भाग्य में खटास मिले तो उसे मिठास में बदलें। अंधेरे को कोसने की बजाए एक दीया जला लें। दूसरों की नकल मत करें। जो है वहीं बने रहे। दिखावा मत करें।
* ईश्वर की नियामतों को याद रखें। जो आपके पास नहीं है, उसका रोना मत रोएं। जैसे के साथ-तैसा मत करें। क्षमाशील बनें।
* अपने दिमाग में आशावादी, साहस, स्वास्थ्य, शांति की विचार लहरियां आने दें। होनी से लड़िये मत। जो होना है, उसके लिये तैयार रहें। चिंता मत करें।
* आज की परिधि में जियें। कल परसों या बीते समय का रोना मत रोएं। अपने निर्णय खुद लें।
* ईश्वर में विश्वास रखें। उसने आपको धरती पर किसी विशेष कार्य को सम्पन्न करने को भेजा है। अपनी निष्क्रियता से निकम्मे मत बनें।
* झूठे सपने देखना छोड़ दें। समय और मन की शक्ति को पहचानें। जो भी कार्य करें, लगन व परिश्रम से।
* अच्छी व प्रेरणादायक पुस्तकें जरूर पढ़ें। घर में अच्छी पुस्तकों की लाइब्रेरी बनाए जिनसे आपको जीने की प्रेरणा मिलेगी।
* भाग्य के भरोसे मत बैठें। भाग्य नाम की वस्तु दुनिया में कमजोर और निकम्मे लोगों के लिये है। विवेक से काम लें। जोश में होश मत खोएं।
* धन का सदुपयोग करें। शादी-विवाह या व्यर्थ लेन-देन में पैसा व्यर्थ मत गवाएं। नशा छोड़ दें। नशा नाश कर देता है।
* विपक्षी का धैर्य, साहस, हिम्मत से मुकाबला करें। धन प्राप्त करने के गलत रास्ते मत अपनाएं। किसी की सम्पति पर नजर मत रखें। लोभ, लालच व चोरी मत करें।
* स्वयं खुश रहें और दूसरों को भी रखें। लड़ने वाली बातों और गुस्से से दूर रहें। राई का पहाड़ मत बनाए परन्तु पहाड़ की राई बना डालें। अपना दुखड़ा दूसरों के सामने मत रोएं। दूसरों के दुख में खुशी मत मनाएं।
* अंधविश्वासी मत बनें। दूसरों की गलत बातें मत मानें। ठीक को ठीक और गलत को गलत मान कर चलें। न दूसरों को धोखा दें, न ही खाएं। मूर्ख, दुष्ट, धोखेबाज एवं छली कपटी लोगों से दूर रहने की चेष्टा करें।
* ईश्वर ने हमें सुंदर शरीर दिया है। इसको स्वस्थ रखें। इसे चिंता, बीमारी से बचाएं। इसे नशे एवं कुसंगत से बचाएं। इसे अपनी क्षमता से दुनिया में अद्वितीय बनाए क्योंकि हर व्यक्ति विलक्षण है।
Saturday, October 23, 2010
उदासी भगाने के राज जानें
जी हां, आशा जहां जीवन में आक्सीजन की तरह है, उदासी जानलेवा और दमघोटू लेकिन लोग हैं कि उदासी ही ओढ़े रहना चाहते हैं। जरा सी कोई समस्या हुई नहीं कि खुशियों के परिंदे हवा में उड़ जाते हैं।
ऐसा क्यों होता है? क्योंकि मन को हम ने इसी तरह ट्रेन्ड किया है। लेकिन जरा सोचिए, क्या यह जीवन बार-बार मिलेगा। कितना सुंदर कितना अद्भुत है यह संसार और मनुष्य जीवन एक करिश्मा ही तो है। खुशियां हमारे चारों ओर बिखरी हैं। बस समेटने की कला आनी चाहिए। मजे की बात यह है कि इनकी कोई कॉस्ट नहीं होती। ये मुफ्त मिलती हैं। न आपको फॉरेन टूर लगाने की जरूरत है, न डायमंड के लाखों के जेवरात खरीदने और इंपोर्टेंड बड़ी शानदार गाड़ियों में बैठकर पेट्रोल फूंकने की। ‘मैन इज ए सोशल एनीमल’ यह मानव जीवन का सच है। लोगों से इंटरएक्ट करके ही व्यक्तित्व पनपता है, संवरता है और संतुलित रहता है।
लोगों से संपर्क में रहें : अकेला व्यक्ति पागलपन की कगार पर पहुंच सकता है इसलिए सामाजिक बनें। किसी संस्था से जुड़ जाएं जहां आपको विभिन्न प्रकृति के लोग मिलेंगे। आपके पास करने को जब सोशल वर्क होगा तो यह आपका सेल्फ कॉनफिडेंस बढ़ाएगा और आपको संतुष्टि प्रदान करेगा।
मनुष्य की उपस्थिति मात्र में एक ऊष्मा होती है। इसका सेंक लें। इसके लिये आप किसी भी भीड़ भरे स्थान पर जा सकते हैं। किसी मंदिर, गुरुद्वारे या कहीं भीड़ भरे पार्क में बेंच पर आसन जमा लें या किसी खाली दुकान की ओट लेकर बैठ जाएं या अगर बैठ चौबारे जग का मुजरा देखने को मन तरस रहा है तो रेलवे स्टेशन सबसे बढ़िया जगह है। दौड़ते भागते लोग हों या परिवारों के साथ चादर पर लंबी ताने आराम करते या चाय सिप करते लोग हों, उन्हें देखते आपका बढ़िया मनोरंजन हो सकता है बशर्तें आपकी संवेदनाएं जीवित बची हों। खुश रहने का यह एक बढ़िया नुस्खा है।
लिखिए और स्वस्थ रहिए : लेखन ध्यान की तरह मस्तिष्क को स्थिरता प्रदान करता है। तनाव कम करता है। जिंदगी सतत संघर्ष है। राह में दुश्वारियां ज्यादा हैं। रिश्तों में मिठास कम, कड़वाहटें ज्यादा हैं मगर रिश्ते मिठास कम कड़वाहटें ज्यादा है मगर रिश्ते जिंदगी में अहम हैं। उनके बिना चल भी नहीं सकते। यही रिश्ते अक्सर तनाव का कारण बन जाते हैं।
आप किसी से अच्छा व्यवहार करती हैं लेकिन फिर भी वो जाने किन कुंठाओं, गलतफहमियों यार् ईष्या के कारण बेवजह आपको आहत करने पर तुला रहे तो आपकी नाराजगी जायज है लेकिन आप जानते हैं कि नाराजगी प्रगट करने से बात और बिगड़ जाएगी। ऐसे में आप क्या करें? अपनी छटपटाहट, बेचैनी नफरत जैसी नकारात्मक फीलिंग्स से कैसे निजात पाएं? सिंपल आप अपनी सारी कड़वाहट, शिकायतें, मलाल किसी कागज पर लिख डालें और पढ़कर तुरंत उसे नष्ट कर दें। ये फंडा आपको तुरंत राहत देगा। आप भार मुक्त महसूस करेंगे और कह उठेंगे व्हाट ए ग्रेट रिलीफ।
अटैक द आफर : कई बार हम लोगों को शिकायत करते सुनते हैं कि लोग उनके सीधेपन का फायदा उठाते हैं। अक्सर होता यह है कि कई लोगों को दूसरों को नीचा दिखाने में बहुत आनंद आता है या बेवजह आलोचना करना भी कइयों का शगल होता है।
अब ऐसे में कुछ निरीह प्राणी सफाई देते-देते थक जाते हैं। कंप्लेन और एक्सप्लेन का यह गेम एक्सप्लेन करने वाले पर कुछ ज्यादा भारी पड़ने लग जाता है। एक उक्ति है आक्रमण सुरक्षा की सबसे बड़ी नीति है। आप इसे मॉडिफाइड वे में अपनाएं।
आप आलोचना से त्रस्त होने, सफाई देने, डिफेंस मेकेनिज्म अपनाने के बजाय आलोचक से आलोचना की विवेचना करने को कहें। कारण बताओ नोटिस दें। निश्चय ही वह बगले झांकने लगेगा। अब तक उसका हौसला इसलिए बुलंद था कि आप सुरक्षात्मक रवैया अपना रहे थे यानी कि वो आपके सीधेपन का फायदा उठा रहा था। आप भी जरा टेढ़े होकर देखें।सामने वाला लाइन पर आ जाएग। अब आप के मन में भी न कोई दंश पलेगा, न कोई टीस आपको तकलीफ देगी।
ऐसा क्यों होता है? क्योंकि मन को हम ने इसी तरह ट्रेन्ड किया है। लेकिन जरा सोचिए, क्या यह जीवन बार-बार मिलेगा। कितना सुंदर कितना अद्भुत है यह संसार और मनुष्य जीवन एक करिश्मा ही तो है। खुशियां हमारे चारों ओर बिखरी हैं। बस समेटने की कला आनी चाहिए। मजे की बात यह है कि इनकी कोई कॉस्ट नहीं होती। ये मुफ्त मिलती हैं। न आपको फॉरेन टूर लगाने की जरूरत है, न डायमंड के लाखों के जेवरात खरीदने और इंपोर्टेंड बड़ी शानदार गाड़ियों में बैठकर पेट्रोल फूंकने की। ‘मैन इज ए सोशल एनीमल’ यह मानव जीवन का सच है। लोगों से इंटरएक्ट करके ही व्यक्तित्व पनपता है, संवरता है और संतुलित रहता है।
लोगों से संपर्क में रहें : अकेला व्यक्ति पागलपन की कगार पर पहुंच सकता है इसलिए सामाजिक बनें। किसी संस्था से जुड़ जाएं जहां आपको विभिन्न प्रकृति के लोग मिलेंगे। आपके पास करने को जब सोशल वर्क होगा तो यह आपका सेल्फ कॉनफिडेंस बढ़ाएगा और आपको संतुष्टि प्रदान करेगा।
मनुष्य की उपस्थिति मात्र में एक ऊष्मा होती है। इसका सेंक लें। इसके लिये आप किसी भी भीड़ भरे स्थान पर जा सकते हैं। किसी मंदिर, गुरुद्वारे या कहीं भीड़ भरे पार्क में बेंच पर आसन जमा लें या किसी खाली दुकान की ओट लेकर बैठ जाएं या अगर बैठ चौबारे जग का मुजरा देखने को मन तरस रहा है तो रेलवे स्टेशन सबसे बढ़िया जगह है। दौड़ते भागते लोग हों या परिवारों के साथ चादर पर लंबी ताने आराम करते या चाय सिप करते लोग हों, उन्हें देखते आपका बढ़िया मनोरंजन हो सकता है बशर्तें आपकी संवेदनाएं जीवित बची हों। खुश रहने का यह एक बढ़िया नुस्खा है।
लिखिए और स्वस्थ रहिए : लेखन ध्यान की तरह मस्तिष्क को स्थिरता प्रदान करता है। तनाव कम करता है। जिंदगी सतत संघर्ष है। राह में दुश्वारियां ज्यादा हैं। रिश्तों में मिठास कम, कड़वाहटें ज्यादा हैं मगर रिश्ते मिठास कम कड़वाहटें ज्यादा है मगर रिश्ते जिंदगी में अहम हैं। उनके बिना चल भी नहीं सकते। यही रिश्ते अक्सर तनाव का कारण बन जाते हैं।
आप किसी से अच्छा व्यवहार करती हैं लेकिन फिर भी वो जाने किन कुंठाओं, गलतफहमियों यार् ईष्या के कारण बेवजह आपको आहत करने पर तुला रहे तो आपकी नाराजगी जायज है लेकिन आप जानते हैं कि नाराजगी प्रगट करने से बात और बिगड़ जाएगी। ऐसे में आप क्या करें? अपनी छटपटाहट, बेचैनी नफरत जैसी नकारात्मक फीलिंग्स से कैसे निजात पाएं? सिंपल आप अपनी सारी कड़वाहट, शिकायतें, मलाल किसी कागज पर लिख डालें और पढ़कर तुरंत उसे नष्ट कर दें। ये फंडा आपको तुरंत राहत देगा। आप भार मुक्त महसूस करेंगे और कह उठेंगे व्हाट ए ग्रेट रिलीफ।
अटैक द आफर : कई बार हम लोगों को शिकायत करते सुनते हैं कि लोग उनके सीधेपन का फायदा उठाते हैं। अक्सर होता यह है कि कई लोगों को दूसरों को नीचा दिखाने में बहुत आनंद आता है या बेवजह आलोचना करना भी कइयों का शगल होता है।
अब ऐसे में कुछ निरीह प्राणी सफाई देते-देते थक जाते हैं। कंप्लेन और एक्सप्लेन का यह गेम एक्सप्लेन करने वाले पर कुछ ज्यादा भारी पड़ने लग जाता है। एक उक्ति है आक्रमण सुरक्षा की सबसे बड़ी नीति है। आप इसे मॉडिफाइड वे में अपनाएं।
आप आलोचना से त्रस्त होने, सफाई देने, डिफेंस मेकेनिज्म अपनाने के बजाय आलोचक से आलोचना की विवेचना करने को कहें। कारण बताओ नोटिस दें। निश्चय ही वह बगले झांकने लगेगा। अब तक उसका हौसला इसलिए बुलंद था कि आप सुरक्षात्मक रवैया अपना रहे थे यानी कि वो आपके सीधेपन का फायदा उठा रहा था। आप भी जरा टेढ़े होकर देखें।सामने वाला लाइन पर आ जाएग। अब आप के मन में भी न कोई दंश पलेगा, न कोई टीस आपको तकलीफ देगी।
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