भगवान जिसे अच्छी खुराक खाने की और उसे डाइजेस्ट
करने की शक्ति देता है वह व्यक्ति भाग्यशाली है। संसार की 60 प्रतिशत जनता अलग-अलग बीमारियों के कारण अच्छी तरह
जीवन के उपभोगों का आनंद नहीं ले पाती। स्वस्थ, सदाबहार
एव चिरयौवन की शक्ति दिमाग में है, संकल्प
में है, संतुष्टि संयमित जीवन में है। उम्र का
प्रभाव हर व्यक्ति पर होता है, उसे प्रभावहीन बनाना
एक कला है।
* हमें सदा ध्यान में रखना चहिये कि हम मुंह
में क्या डालते हैं और क्या निकालते हैं। जीने की उमंग, जिंदगी में साहस और शक्ति होना आवश्यक है। 80 प्रतिशत
बीमारियां मात्र सोचने से ही होती हैं। प्रसन्न रहने की कोशिश यथासंभव करनी
चाहिये। दूध और फल जीवनरक्षक हैं। इन्हें खाएं और कायाकल्प करें।
* प्रतिदिन पांच से आठ गिलास पानी पिएं। कम
खाओ, गम खाओ, संतुलित
खाओ, चिंतामुक्त जीवन जियो। अंकुरित अनाज
जीवनरक्षक हैं। दही लस्सी अंतड़ियों का विष निकाल देते हैं। ठंडे प्रदेशों के लोगों
का जीवनकाल लम्बा होता है। शुध्द वायु और साफ जल का सेवन करें। ईश्वर स्तुति से मन
शांत रखें। ध्यान, रेकी, प्राणायाम, एरोबिक्स करें।
*हर दिन नया दिन मानकर खुश रहें। पुरानी
बातें भूल जाएं। सभी विरोधियों को क्षमा करके तटस्थ हो जाएं। मन को उत्साहपूर्वक
रखें। जीवन शैली चुस्त-फुर्तीली रखें। जीवेम शरद: शतम का निश्चय रखें।
* सदाबहार रहने का अर्थ है हमेशा जवान रहना और
जवान रहने का अभिप्राय: है कि मन की अनुभूति में सदा स्फूर्तिवान रहना। यदि आप
पचास वर्ष की उम्र में अपने आपको तीस वर्ष के महसूस करते हैं तो आप में उत्साह
उमंग स्वत: पैदा हो जाएंगे- आपके चेहरे पर तीस वर्ष के भाव पैदा स्वत: हो जाएंगे।
* संकल्प से ही काया कल्प हो जाता है-जीवन के
अन्त में हमें उतना फल ही प्राप्त होता है जितना हम जीवन को देते हैं- जिंदगी चलती
ही रहती है। जिंदगी का दूसरा नाम खोज है। जब तक खोज चलती रहती है, जीवन चलता है, जब खोज बंद हो जाती
है, जीवन समाप्त हो जाता है।
) जिंदगी के खेल को साधारण ढंग से लें तो आपको
इस खेल में आनंद आएगा। जिसे जीने का आनन्द नहीं आता, समझें
उसे जीने की कला नहीं आती।
* जियो और जीने दो। एक अनुकरणीय एवं
मार्गदर्शक जीवन जियो। लोग कहें कि क्या जीने का अंदाज है। विश्व में अपने पदचिह्न
छोड़ जाओ जिन्हें देखकर आने वाली पीढ़ियां अपना रास्ता ढूंढ सकें।
* अक्सर देखने में आता है कि पल की खबर नहीं, सामान सौ बरस का। जीवन की क्षण भंगुरता को देखकर भी मानव नहीं समझता। वह
व्यर्थ में महत्व की आकांक्षा में जीता रहता है। प्रयत्न और कोशिश जीवन का स्वभाव
है। इन्हें सहजता से लेना आप पर निर्भर करता है।
* यह जीवन एक विचित्र सपना है जो आसानी से टूट
जाता है। जीवन भर हम चुन-चुन कर खुशियों की माला बनाते हैं- जब पहनने का वक्त आता
है तो अचानक टूटकर माला दाने-दाने बिखर जाती है।
* जीवन भूल भुलैया का नाम है। जिसका रास्ता
हमें मालूम नहीं होता- चलते-चलते जिस मोड़ पर जिंदगी मुड़ जाए हम उसी तरफ मुड़ पड़ते
हैं। जलते दीपक से ही बुझे हुए दीपक, जलाए
जा सकते हैं। मन रूपी दिये का तेल कभी समाप्त नहीं होने देना चाहिये।
* जिस मनुष्य के पास मनोबल नहीं होता- उसके
पास कुछ भी नहीं होता- मानव सामान्यत: एक बहुत ही क्षुद्र जीव है। मनुष्यता एवं
आत्मविश्वास ही उसे महान बनाते हैं। जिंदगी सुखपूर्वक जीने का मूलमंत्र यही है कि
आप इसे जैसा चाहें बना सकते हैं। उत्कृष्ट मानसिक भावों से हृदय को पवित्र बनाएं।
* अपनी वाकपटुता की क्षमता के कारण मानव पशु
से भिन्न है। वह अपनी मूर्खताएं, कमियां
छिपा जाता है। जो व्यक्ति कठोर समय में भी दुखी नहीं होता। समभाव रहता है। वह
महामानव होता है। जीवन के हवनकुंड में सूर्य से ज्यादा तपिश होती है। निराशा के
गीत गाने वाले कभी जीवन का आनंद उठा नहीं सकते।
* सोए हुए मानव को तो उठाया जा सकता है परन्तु
जागे हुए व्यक्ति को जगाना बहुत मुश्किल होता है। मानव अपने दु:खों के प्रति सजग न
रहकर दूसरों के सुखो से दुखी होता रहता है।
अत: आप अपना जीवन अपने ढंग नियमों से और गति से जिएं।
हर एक व्यक्ति के जीने का अंदाज अलग होता है। किसी की नकल न करें।
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