अक्सर अपने दैनिक जीवन में किसी भी छोटी या बड़ी समस्या के उठने पर हम सहायता-सलाह के लिये झट से दूसरों के पास दौड़ जाते हैं। अपनी समस्या किसी एक से नहीं कई से कहते हैं और कई तरह के हल भी पाते हैं। अच्छा यही है कि ऐसे में सुनी समझी तो सभी की जाए पर किया वही जाए जो हमें हमारी स्थिति, सुविधा के हिसाब से सही प्रतीत हो। कई बार दूसरों के सुझाए तरीकों से काम करने के कारण जब असफलता हाथ लगती हैं, तब जहां नुकसान होता है, वहीं मन भी क्लेश पाता है। संबंधों में भी दरार पड़ने की संभावना रहती है। शिकायत करने पर सलाह देने वाला बड़ी आसानी से, 'अरे, क्या हम कहेंगे कि कुएं में गिर पड़ो तो कूद जाओगे? अपनी बुध्दि भी तो चलाते' कहकर, हाथ झाड़ू, न केवल अलग हो जाता है वरन् हमारी समस्या, बुध्दि के दिवालिएपन का बखान करेगा, हमें मूर्ख साबित करेगा।
जीवन उतार-चढ़ाव का नाम है। यहां केवल फूल ही फूल नहीं हैं। सुख और दु:ख दोनों ही जीवन में होते हैं। इन्हें हिम्मत से, कभी सुख व कभी दु:ख महसूस करके ही पार किया जाता है। कोई भी समस्या चाहे कितनी ही गहन, गंभीर हो, जी घबरा दे, पर यदि धीरज से, अपने तमाम हालात को ध्यान में रखकर इनका मुकाबला किया जाए तो सफलता मिल सकती है व बखूबी आत्मविश्वास को दृढ़ बनाकर आगे से आगे बढ़ा जो सकता है। बशर्ते प्रक्रिया व मानसिकता मौलिक व सुचारू हो। शुरू-शुरू में छोटी अनपेक्षित बात, व्यवहार या स्थिति भी तीखी प्रतीत होती है। इस पर हमारी प्रतिक्रिया भी तीखी व आक्रामक ही होती है पर यदि कुछ समय मौन रहकर पूरी समस्या पर सिलसिलेवार ढंग से विचार किया जाए तो कई हल भी खुद ही सूझ पड़ेंगे। हलों के इन तमाम विकल्पों से तब कोई भी एक अच्छा विकल्प खोजा जा सकता है। किसी भी समस्या के उठने पर उसके बारे में परिणाम बुरे से बुरे क्या हो सकते हैं, सोचकर अब यत्न करना कि कैसे हालात ठीक किये जाएं। ज्यादा व्यवहारिक सोच है।
अनेक बार ऐसी विपरीत स्थितियां उपजने लगती हैं, जो तन-मन को व्यथित करती हैं। बहुत संभव है कि ऐसे हालात को हम बदल न पाएं पर इस स्थिति में भी यह तो संभव है कि हम उन घटनाओं, स्थितियों व हालात को देखने का नजरिया ही बदल लें। अब विचार बदलते ही भावनाएं भी बदलने लगेंगी। हौसला, उमंग, उत्साह बढ़ेगा व चिंता दूर होगी। समस्याओं से जूझने वाले जुझारू व्यक्ति ही मनचाही सफलता पा सकते हैं। आत्मविश्वास बनाये रख पाते हैं और फिर आगे के जीवन में उसी स्तर की व उससे हल्की समस्या को देखकर तनिक भी नहीं घबराते।
अपने अंदर ऐसा गुण विकसित करना जरूरी है, दो दु:खों में भी संतुलन रख पाए व कठिनाइयों का भयावह रूप नहीं, बल्कि उसका भी कोई भला पक्ष देख सके। यह प्रकृति का शाश्वत नियम है कि बुरे से बुरे में भी कोई न कोई अच्छाई छिपी रहती है। हम चूंकि काला चश्मा लगाकर संसार को देखते हैं। अत: हमें सब कुछ बेमानी, समस्या भरा ही दिखता है, जबकि उजला पक्ष भी है। बस, देखने भर की जरूरत है। अपनी परेशानियों में घिरकर, उनका जहां-तहां बखान करेक उसके तनाव के मकड़जाल में खुद को कैद करने व फड़फड़ाने से कहीं बेहतर व सुरक्षित उपाय है अपने अस्तित्व को अब भी बनाए रखना। अपनी दिक्कतों को अनदेखा कर उन साधनों, उपलब्धियों को महसूस करना, जो हमारे पास हैं। विपरीत हालात में भी धैर्य न खोकर सिर ऊंचा करके हंस सकना हमारे मानसिक संबल व साहस का प्रतीक है। कहा भी है- 'हंसी साहस का नाम है। खासकर तब, जब वह खुद पर हंसी जाए।'
प्राय: लोग व्यवसाय, स्वास्थ्य व परिवार में संतुलन नहीं रख पाते व सुख का कोई न कोई छोर गंवा देते हैं। अवसाद के क्षणों में एकाकी हो जाना, सबसे कटना व अवसादी हो जाना, घुटनों में सिर छिपाकर यह आस करना कि सुख व अनुकूल हालात आपका दरवाजा खटखटाएंगे, भूल है। सुख खुद खोजना होता है। सुख हमारी सोच में हैं। अत: जरूरी है कि हर हाल में खुश बने रहने की आदत पालें। अपने लिये भी जियें व जो सुख हमें उपलब्ध है, को शिद्दत से महसूस करें। प्राय: अनुकूल हालात बड़ी कठिनाइयों से मिलते हैं पर प्रतिकूलता हम स्वयं अपनी नादानी से जुटा लेते हैं। जो है, उसे महसूस करके चैन पाना व जो नहीं है, उसे प्राप्त करने का यत्र करना ही जीवन है। अपने भीतर स्फूर्ति, उत्साह महसूस करना जरूरी है। इसके लिये अपनी रूचि, पसंद का कोई काम करना, अपेक्षाओं को न पालना जरूरी है, जो बदला जा सकना संभव है, उसके लिये यत्न जरूरी है पर जो बदला नहीं जा सकता, उसे स्वीकार कर लेना ही समझदारी है।
किसी को यह पता नहीं कि उसके साथ कब क्या घटने वाला है। किसी दुर्घटना के लिये तैयार रहने की पूर्व योजना बना लेना संभव ही नहीं है। अच्छा यही है कि मानसिक तौर पर सदैव किसी भी अनपेक्षित समस्या के लिये तैयार रहा जाए, किसी समस्या के किसी भी रूप से निपटने के लिये मानसिक तौर पर तैयार व्यक्ति उस समस्या के उठने पर ज्यादा सामान्य व्यवहार कर पाता है। जो ऐसा नहीं करते, उनके लिये इस बात की पूरी-पूरी संभावना रहती है कि उन्हें जब-तब आहत होना पड़े, हौसला गंवाना पड़े। यदि हम अप्रत्याशित बातों की अपेक्षा करना सीख लें तो उनके उभरने पर उनकी उपेक्षा कर पाएंगे और तब जीवन के सुख-दु:खों का मुकाबला धैर्य से बिना टूटे कर भी पाएंगे। आत्मविश्वास और मनोबल तो हमारी थाती रहेगा ही, जो हमें जीने को उत्साही बनाये रखेगा।
जीवन उतार-चढ़ाव का नाम है। यहां केवल फूल ही फूल नहीं हैं। सुख और दु:ख दोनों ही जीवन में होते हैं। इन्हें हिम्मत से, कभी सुख व कभी दु:ख महसूस करके ही पार किया जाता है। कोई भी समस्या चाहे कितनी ही गहन, गंभीर हो, जी घबरा दे, पर यदि धीरज से, अपने तमाम हालात को ध्यान में रखकर इनका मुकाबला किया जाए तो सफलता मिल सकती है व बखूबी आत्मविश्वास को दृढ़ बनाकर आगे से आगे बढ़ा जो सकता है। बशर्ते प्रक्रिया व मानसिकता मौलिक व सुचारू हो। शुरू-शुरू में छोटी अनपेक्षित बात, व्यवहार या स्थिति भी तीखी प्रतीत होती है। इस पर हमारी प्रतिक्रिया भी तीखी व आक्रामक ही होती है पर यदि कुछ समय मौन रहकर पूरी समस्या पर सिलसिलेवार ढंग से विचार किया जाए तो कई हल भी खुद ही सूझ पड़ेंगे। हलों के इन तमाम विकल्पों से तब कोई भी एक अच्छा विकल्प खोजा जा सकता है। किसी भी समस्या के उठने पर उसके बारे में परिणाम बुरे से बुरे क्या हो सकते हैं, सोचकर अब यत्न करना कि कैसे हालात ठीक किये जाएं। ज्यादा व्यवहारिक सोच है।
अनेक बार ऐसी विपरीत स्थितियां उपजने लगती हैं, जो तन-मन को व्यथित करती हैं। बहुत संभव है कि ऐसे हालात को हम बदल न पाएं पर इस स्थिति में भी यह तो संभव है कि हम उन घटनाओं, स्थितियों व हालात को देखने का नजरिया ही बदल लें। अब विचार बदलते ही भावनाएं भी बदलने लगेंगी। हौसला, उमंग, उत्साह बढ़ेगा व चिंता दूर होगी। समस्याओं से जूझने वाले जुझारू व्यक्ति ही मनचाही सफलता पा सकते हैं। आत्मविश्वास बनाये रख पाते हैं और फिर आगे के जीवन में उसी स्तर की व उससे हल्की समस्या को देखकर तनिक भी नहीं घबराते।
अपने अंदर ऐसा गुण विकसित करना जरूरी है, दो दु:खों में भी संतुलन रख पाए व कठिनाइयों का भयावह रूप नहीं, बल्कि उसका भी कोई भला पक्ष देख सके। यह प्रकृति का शाश्वत नियम है कि बुरे से बुरे में भी कोई न कोई अच्छाई छिपी रहती है। हम चूंकि काला चश्मा लगाकर संसार को देखते हैं। अत: हमें सब कुछ बेमानी, समस्या भरा ही दिखता है, जबकि उजला पक्ष भी है। बस, देखने भर की जरूरत है। अपनी परेशानियों में घिरकर, उनका जहां-तहां बखान करेक उसके तनाव के मकड़जाल में खुद को कैद करने व फड़फड़ाने से कहीं बेहतर व सुरक्षित उपाय है अपने अस्तित्व को अब भी बनाए रखना। अपनी दिक्कतों को अनदेखा कर उन साधनों, उपलब्धियों को महसूस करना, जो हमारे पास हैं। विपरीत हालात में भी धैर्य न खोकर सिर ऊंचा करके हंस सकना हमारे मानसिक संबल व साहस का प्रतीक है। कहा भी है- 'हंसी साहस का नाम है। खासकर तब, जब वह खुद पर हंसी जाए।'
प्राय: लोग व्यवसाय, स्वास्थ्य व परिवार में संतुलन नहीं रख पाते व सुख का कोई न कोई छोर गंवा देते हैं। अवसाद के क्षणों में एकाकी हो जाना, सबसे कटना व अवसादी हो जाना, घुटनों में सिर छिपाकर यह आस करना कि सुख व अनुकूल हालात आपका दरवाजा खटखटाएंगे, भूल है। सुख खुद खोजना होता है। सुख हमारी सोच में हैं। अत: जरूरी है कि हर हाल में खुश बने रहने की आदत पालें। अपने लिये भी जियें व जो सुख हमें उपलब्ध है, को शिद्दत से महसूस करें। प्राय: अनुकूल हालात बड़ी कठिनाइयों से मिलते हैं पर प्रतिकूलता हम स्वयं अपनी नादानी से जुटा लेते हैं। जो है, उसे महसूस करके चैन पाना व जो नहीं है, उसे प्राप्त करने का यत्र करना ही जीवन है। अपने भीतर स्फूर्ति, उत्साह महसूस करना जरूरी है। इसके लिये अपनी रूचि, पसंद का कोई काम करना, अपेक्षाओं को न पालना जरूरी है, जो बदला जा सकना संभव है, उसके लिये यत्न जरूरी है पर जो बदला नहीं जा सकता, उसे स्वीकार कर लेना ही समझदारी है।
किसी को यह पता नहीं कि उसके साथ कब क्या घटने वाला है। किसी दुर्घटना के लिये तैयार रहने की पूर्व योजना बना लेना संभव ही नहीं है। अच्छा यही है कि मानसिक तौर पर सदैव किसी भी अनपेक्षित समस्या के लिये तैयार रहा जाए, किसी समस्या के किसी भी रूप से निपटने के लिये मानसिक तौर पर तैयार व्यक्ति उस समस्या के उठने पर ज्यादा सामान्य व्यवहार कर पाता है। जो ऐसा नहीं करते, उनके लिये इस बात की पूरी-पूरी संभावना रहती है कि उन्हें जब-तब आहत होना पड़े, हौसला गंवाना पड़े। यदि हम अप्रत्याशित बातों की अपेक्षा करना सीख लें तो उनके उभरने पर उनकी उपेक्षा कर पाएंगे और तब जीवन के सुख-दु:खों का मुकाबला धैर्य से बिना टूटे कर भी पाएंगे। आत्मविश्वास और मनोबल तो हमारी थाती रहेगा ही, जो हमें जीने को उत्साही बनाये रखेगा।
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