Monday, October 1, 2012

मुस्कराकर सामना कीजिए जीवन की समस्याओं का

अक्सर अपने दैनिक जीवन में किसी भी छोटी या बड़ी समस्या के उठने पर हम सहायता-सलाह के लिये झट से दूसरों के पास दौड़ जाते हैं। अपनी समस्या किसी एक से नहीं कई से कहते हैं और कई तरह के हल भी पाते हैं। अच्छा यही है कि ऐसे में सुनी समझी तो सभी की जाए पर किया वही जाए जो हमें हमारी स्थिति, सुविधा के हिसाब से सही प्रतीत हो। कई बार दूसरों के सुझाए तरीकों से काम करने के कारण जब असफलता हाथ लगती हैं, तब जहां नुकसान होता है, वहीं मन भी क्लेश पाता है। संबंधों में भी दरार पड़ने की संभावना रहती है। शिकायत करने पर सलाह देने वाला बड़ी आसानी से, 'अरे, क्या हम कहेंगे कि कुएं में गिर पड़ो तो कूद जाओगे? अपनी बुध्दि भी तो चलाते' कहकर, हाथ झाड़ू, न केवल अलग हो जाता है वरन् हमारी समस्या, बुध्दि के दिवालिएपन का बखान करेगा, हमें मूर्ख साबित करेगा।

जीवन उतार-चढ़ाव का नाम है। यहां केवल फूल ही फूल नहीं हैं। सुख और दु:ख दोनों ही जीवन में होते हैं। इन्हें हिम्मत से, कभी सुख व कभी दु:ख महसूस करके ही पार किया जाता है। कोई भी समस्या चाहे कितनी ही गहन, गंभीर हो, जी घबरा दे, पर यदि धीरज से, अपने तमाम हालात को ध्यान में रखकर इनका मुकाबला किया जाए तो सफलता मिल सकती है व बखूबी आत्मविश्वास को दृढ़ बनाकर आगे से आगे बढ़ा जो सकता है। बशर्ते प्रक्रिया व मानसिकता मौलिक व सुचारू हो। शुरू-शुरू में छोटी अनपेक्षित बात, व्यवहार या स्थिति भी तीखी प्रतीत होती है। इस पर हमारी प्रतिक्रिया भी तीखी व आक्रामक ही होती है पर यदि कुछ समय मौन रहकर पूरी समस्या पर सिलसिलेवार ढंग से विचार किया जाए तो कई हल भी खुद ही सूझ पड़ेंगे। हलों के इन तमाम विकल्पों से तब कोई भी एक अच्छा विकल्प खोजा जा सकता है। किसी भी समस्या के उठने पर उसके बारे में परिणाम बुरे से बुरे क्या हो सकते हैं, सोचकर अब यत्न करना कि कैसे हालात ठीक किये जाएं। ज्यादा व्यवहारिक सोच है।

अनेक बार ऐसी विपरीत स्थितियां उपजने लगती हैं, जो तन-मन को व्यथित करती हैं। बहुत संभव है कि ऐसे हालात को हम बदल न पाएं पर इस स्थिति में भी यह तो संभव है कि हम उन घटनाओं, स्थितियों व हालात को देखने का नजरिया ही बदल लें। अब विचार बदलते ही भावनाएं भी बदलने लगेंगी। हौसला, उमंग, उत्साह बढ़ेगा व चिंता दूर होगी। समस्याओं से जूझने वाले जुझारू व्यक्ति ही मनचाही सफलता पा सकते हैं। आत्मविश्वास बनाये रख पाते हैं और फिर आगे के जीवन में उसी स्तर की व उससे हल्की समस्या को देखकर तनिक भी नहीं घबराते।

अपने अंदर ऐसा गुण विकसित करना जरूरी है, दो दु:खों में भी संतुलन रख पाए व कठिनाइयों का भयावह रूप नहीं, बल्कि उसका भी कोई भला पक्ष देख सके। यह प्रकृति का शाश्वत नियम है कि बुरे से बुरे में भी कोई न कोई अच्छाई छिपी रहती है। हम चूंकि काला चश्मा लगाकर संसार को देखते हैं। अत: हमें सब कुछ बेमानी, समस्या भरा ही दिखता है, जबकि उजला पक्ष भी है। बस, देखने भर की जरूरत है। अपनी परेशानियों में घिरकर, उनका जहां-तहां बखान करेक उसके तनाव के मकड़जाल में खुद को कैद करने व फड़फड़ाने से कहीं बेहतर व सुरक्षित उपाय है अपने अस्तित्व को अब भी बनाए रखना। अपनी दिक्कतों को अनदेखा कर उन साधनों, उपलब्धियों को महसूस करना, जो हमारे पास हैं। विपरीत हालात में भी धैर्य न खोकर सिर ऊंचा करके हंस सकना हमारे मानसिक संबल व साहस का प्रतीक है। कहा भी है- 'हंसी साहस का नाम है। खासकर तब, जब वह खुद पर हंसी जाए।'

प्राय: लोग व्यवसाय, स्वास्थ्य व परिवार में संतुलन नहीं रख पाते व सुख का कोई न कोई छोर गंवा देते हैं। अवसाद के क्षणों में एकाकी हो जाना, सबसे कटना व अवसादी हो जाना, घुटनों में सिर छिपाकर यह आस करना कि सुख व अनुकूल हालात आपका दरवाजा खटखटाएंगे, भूल है। सुख खुद खोजना होता है। सुख हमारी सोच में हैं। अत: जरूरी है कि हर हाल में खुश बने रहने की आदत पालें। अपने लिये भी जियें व जो सुख हमें उपलब्ध है, को शिद्दत से महसूस करें। प्राय: अनुकूल हालात बड़ी कठिनाइयों से मिलते हैं पर प्रतिकूलता हम स्वयं अपनी नादानी से जुटा लेते हैं। जो है, उसे महसूस करके चैन पाना व जो नहीं है, उसे प्राप्त करने का यत्र करना ही जीवन है। अपने भीतर स्फूर्ति, उत्साह महसूस करना जरूरी है। इसके लिये अपनी रूचि, पसंद का कोई काम करना, अपेक्षाओं को न पालना जरूरी है, जो बदला जा सकना संभव है, उसके लिये यत्न जरूरी है पर जो बदला नहीं जा सकता, उसे स्वीकार कर लेना ही समझदारी है।

किसी को यह पता नहीं कि उसके साथ कब क्या घटने वाला है। किसी दुर्घटना के लिये तैयार रहने की पूर्व योजना बना लेना संभव ही नहीं है। अच्छा यही है कि मानसिक तौर पर सदैव किसी भी अनपेक्षित समस्या के लिये तैयार रहा जाए, किसी समस्या के किसी भी रूप से निपटने के लिये मानसिक तौर पर तैयार व्यक्ति उस समस्या के उठने पर ज्यादा सामान्य व्यवहार कर पाता है। जो ऐसा नहीं करते, उनके लिये इस बात की पूरी-पूरी संभावना रहती है कि उन्हें जब-तब आहत होना पड़े, हौसला गंवाना पड़े। यदि हम अप्रत्याशित बातों की अपेक्षा करना सीख लें तो उनके उभरने पर उनकी उपेक्षा कर पाएंगे और तब जीवन के सुख-दु:खों का मुकाबला धैर्य से बिना टूटे कर भी पाएंगे। आत्मविश्वास और मनोबल तो हमारी थाती रहेगा ही, जो हमें जीने को उत्साही बनाये रखेगा।

ध्यान : जिन्दादिली के लिए केवल दो क्षण...

स्वास्थ्य अर्थात 'स्व' में स्थिति हम सहज, संतुलित, सुखी नहीं है इसलिए स्वस्थ भी नहीं है। शरीर का मात्र निरोग या बलवान होना स्वास्थ्य नहीं है। स्वास्थ्य का संबंध मन, मस्तिष्क, प्राण व आत्मा से भी है। सभी स्तरों पर विकार सेगमुक्त व मजबूत रहे बिना स्वस्थ नहीं रहा जा सकता।


लोभ, आसक्ति, क्रोध, वासना वगैरह से सनी दिन भर की भागदौड़, रात में भी तनाव के साथ सोना, सुबह उठने पर शरीर, मन, मस्तिष्क भारी दुखन चुभन थकावट ये स्वास्थ्य के लक्षण तो नहीं है। कसौटी है जिंदादिली। इसकी उपलब्धि के कई सोपान हैं, कई आयाम हैं। यहां प्रस्तुत हैं ध्यान की एक निहायत सरल विधि जो चाहेगी आपसे सिर्फ दो क्षण।

जब सुबह आप आंखें खोलो तो अपने ऊ र्जा से आते-आते आपकी गति कम होती जाए। रात तक आप ढीले हल्के हो जाएं। जब नींद की ओर अग्रसर हों, तो न कोई विचार न उत्तेजना, बस एक ठहराव की स्थिति। सैक्स सेलिब्रेशन हो तो वह भी तनावमुक्त, बिल्कुल नार्मल, कोरे कागज की अवस्था में समर्पित स्थिति में एक जिस्म, एक जान की अनुभूति के लिए। यही नैसर्गिक हैं, लेकिन है हमसे सर्वथा दूर।

शयन से पूर्व बिस्तर पर लेटे हुए यह भावे लाओ कि सुबह मैं प्रसन्न व तरोताजा महसूस करूंगा। संसार भावनामय है। इमोशन से हीन इंसान यंत्र है। उसकी जिंदगी में आनंद के निसर्ग के फूल नहीं खिल सकते। आप विचार शून्य, तनाव रहित होकर हृदय से केवल भाव करो। स्वयं को सुझाव दो तो भी सिर्फ भाव करो कि ऐसा होगा इस सुझाव में आदेश न हो कि ऐसा होना चाहिए। प्रतिज्ञा हठ या दृढ़ संकल्प से कठोरता आती है। आदेश अचेतन में द्वंद्व पैदा करता है। कुछ भी सहज व नैसर्गिक नहीं रह जाता। हमारा समाज आज एक विक्षिप्त मनोदश में जी रहा है। हर चीज निसर्ग के विपरित है, अप्राकृतिक है, यांत्रिक है। जरूरत मौलिकता की है, परम आंनद फलित तभी होगा।

बस सहज भाव से आदेशित नहीं, समर्पित स्वभाव से सुझाव दो कि ऐसा होगा। अगर चित्त की इस दशा से नींद में प्रवेश होगा तो सुबह प्रसन्नता व ऊर्जा से भरी मिलेगी। इसलिए कि शरीर व मन के बीच संवाद हो सकेगा। यह ध्यान मन के अवचेतन में प्रवेश कर इतना गहरा विश्राम और सुकून देता है कि जो गहरी से गहरी निंद्रा में भी संभव नहीं। नींद में तन सोता है मगर मन जागा रहकर, दिन में जो नहीं कर पाया होता वे सारे उपद्रव सपने में करता है।

ध्यान शरीर और मन के साथ आपका संवाद कराता है। यह सौहार्दपूर्ण संवाद आहिस्ता आपको स्वस्थ नींद में ले जाता है जहां न आप जागे होते हैं न सोए होते है। तंद्रा की यह अवस्था सम्मोहन में ट्रान्स कहलाती है। इस स्थिति में मस्तिष्क के भीतर अल्फा तरंगे पैदा होती हैं जो मन को सजग और शिथिल बनाकर देह व मन के बीच समस्वरता कायम करती हैं। इस क्षण में मस्तिष्क की तरंगे उतनी ही होती है। जितनी कि पृथ्वी की एक सेकेंड में लगभग सात साइकल्स मात्र मां की गोद में निश्चित लेटे हुए नवजात शिशु अथवा समग्र प्रेम न्यौछावर करने वाले प्रेमी की बाहों में पड़ी प्रेमिका जैसी अनुभूति मिलती है। या फिर जैसी आप चाहे।

अब दूसरी बात। सुबह जेसे ही जागो, तुरंत आंखें मत खोलो। रात शयन से पूर्व वाले सुझाव को दुहराओ। बस इस भाव में आओ कि मैं प्रसन्न हूं। मुझे प्रसन्न होना है ऐसा नही, बस मैं प्रसन्न हूं, तरोताजा हूं, ऊ र्जा से लबरेज हूं। इस करवट से उस करवट बदलते हुए इस भाव को चारों ओर से आवृत्त कर लेने दो। जागरण का सर्वाधिक मूल्यावान और अदभूत यह क्षण जो अनुभूति देगा वह आपकी चेतना में गहरे बैठ जायेगा।

रात सोने से पहले और सुबह आंख खोलने से पहले के ये दो क्षण 24 घंटे में सबसे महत्वपूर्ण क्षण हैं जब आप अपने अचेतन के सबसे करीब होते हैं। परदा गिरने के इर क्षणों में दिया गयाआपका सुझाव, आंतरिक भाव अचेतन आसानी से सुन लेता है। मनोविज्ञान और अब विज्ञान भी कहता है कि अचेतन जैसे ही कोई सुझाव सुनता है वह कारगर हो जाता है। इस अनुसार चेतना विस्तार होता है और स्वभाव परिवर्तन भी।

मात्र सप्ताह भी उक्त प्रयोग करें। आप पर यह काम करता है तो जारी रखें अन्यथा दूसरे आयामों सोपानों या प्रयोगों की ओररूख करें। जीवन-दर्शन विषयक किसी जिज्ञासा अथवा जिंदादिली से लबरेज जिंदगी के लिए किसी तरह के सहयोग सर्वथा निःशुल्क हेतु मो. 09897513837 पर अपना नाम, उम्र काम, स्टेशन, वैवाहिक स्तर व शिक्षा हडि्डयों का कमजोर हो जाना) से बचने के लिए कैल्शियम की जरूरत होती है।

आवश्यक मात्राः अमेरिका डॉक्टर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 800 मिग्रा एसएमएस करके स्व साक्षात्कार मिशन से संबंध्द हो सकते हैं। फोन से पत्र से अथवा प्रत्यक्ष मार्गदर्शन सहयोग बिना किंचित भी आर्थिक प्रतिदान के प्राप्त कर सकते हैं।

चेतना विकास व स्वास्थ्य के लिए पहले ध्यान का उपरोक्त प्रयोग करें। करके देखने में आपका कोई नुकसान नहीं होगा, आप पर काम कर गया तो आशातीत लाभ होगा। सिर्फ चार-पांच मिनट रात को और एक मिनट सुबह। जल्दी ही आप पायेंगे कि आपका नजरिया, आपका पूरा जीवन धीरे-धीरे बदलने लगा है।

बस रात्रि की यात्रा शुरू करनी है रात्रि के ध्यान से और सुबह की यात्रा शुरू करनी है सुबह के ध्यान से। उज्जवल व आनंदित वर्तमान के लिए हमारी शुभकानाएं। भविष्य के लिए इसलिए नहीं क्योंकि वह वर्तमान के गर्भ में पलता और वर्तमान से ही निकलता है।