जीवन में किसी चीज से मोह, लगाव या आशा न होने पर क्या जीना संभव है? बिल्कुल नहीं। कहने की बात है कि व्यक्ति को कमल के पत्ते पर बूंद की भांति निर्लिप्त रहकर जीना चाहिए।
मोह पर व्यक्ति को होता है और कितनी हो चीजों, बातों व व्यक्तियों से होत है। इनका छिन जाना तो दुःखदायी है ही, किसी व्यक्ति चाहे वह बेटा-बेटी, पति-पत्नी, मित्र कोई भी हो सकता है जिससे आपको लगाव हो, ऐसे व्यक्ति का बिछुड़ना सभी को मानसिक कष्ट देता है। इस सदमे से लगभग सभी को गुजरना पड़ता है। जिनमें इनर पावर मजबूत होती है वे इस दुःख से जूझने की पुरजोर कोशिश करते हैं सफल भी हो जाते हैं, लेकिन अत्यन्त संवेदनशील लोग टूटकर बिखरने लगते हैं व जीवन से विरक्त हो जाते हैं।
ऐसे में उन्हें जरूरत होती है सही मार्गदर्शन की, सच्ची सहानुभूति की व एक विलॉस्कर एंड गाइड की। जो उनकी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें उसे मांजने चमकाने की सही राय दे सके। यह स्त्री-पुरुष कोई भी हो सकता है।
मोहाच्छन्न होने पर शॉक लगने जैसी स्थिति हो जाती है। विश्वास का टूटना, बेरोजगारी, बेरोजगारी, गिरती सेहत, असफलता, सास-बहू का तालमेल न बैठना, पति-पत्नी का आशाओं पर खरा न उतरना, संतान का नालायक निकलना ये सब स्थितियां शॉकिंग होती हैं। जिसेक लिए कोई भी पहले से तैयार नहीं होता। आधुनिकता के नाम पर समाज में आई बुराइयों ने आज जरूर व्यक्ति को कई बातों को लेकर शॉक प्रूफ कर दिया है, लेकिन फिर भी जैसा कि पहले कहा गया है सब्जबाग न हों अगर जीवन में तो जीना संभव नहीं होगा, क्योंकि जीने के लिये यही सहारा है। क्या होता है जब-जब कोई मित्र पीठ में छुरा भौंक दे, पति-पत्नी बेवफाई करने लगें, बेट, मां-बाप का शत्रु बन जाये। बेटी के कारनामें मां-बाप को समाज में मुंह दिखाने के काबिल न छोड़ें, तब व्यक्ति अवसाद में धिरकर टूट जाता है। उसकी जिन्दगी में जानलेवा ठहराव आजाता है, जिससे उसका व्यक्तित्व कुंठित होने लगता है। ऐसे में कई बार व्यक्ति आत्महत्या तक कर बैठता है या करने की नाकाम कोशिश करता है। मोहाच्छन होने की स्थिति में देखा जाए तो हर व्यक्ति की प्रतिक्रिया अलग होती है। यह उसकी फितरत पर निर्भर होता है। पुरुष नशाखोरी या वेश्यावृत्ति की ओर कई बार ऐसी स्थिति में कदम बढ़ाने लगते हैं। युवतियां घर से भाग सकती हैं या सहानुभूति दिखाकर गलत राह पर डालने वालों के बहकावे में आकर जीवन तबाह कर लेती हैं, क्योंकि दिल टूटने से उनका मनोबल भी टूट जाता है और ऐसे में वे इतनी कमजोर हो जाती हैं कि किसी भी गलत आदमी के लिये उनका शोषण करना आसान हो जाता है।
इस तरह से व्यथित लोग आम जिन्दगी (स्ट्रीम आफ लाइफ) से कटकर कई बार पागलपन की कगार तर पहुंच जाते हैं, कभी दिमागी संतुलन खो बैठते हैं। निःसंदेह ऐसे लोगों को मदद की सख्त जरूरत होती है। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए चंडीगढ़ में ब्रोकन हार्ट, पुनर्वास संस्था की स्थापना हुई है। इसका उद्देश्य जीवन से निराश लोगों के अन्दर छिपे गुणों को विकसित कर उन्हें समाज की मुख्य धारा में फिर से शामिल करने का प्रयास करना है। इस प्रयास में ये सफलतापूर्वक कार्य करते हुए असंख्य लोगों की मदद कर चुकी है। ऐसी कई संस्थाएं देश भर में स्थापित होनी चाहिए।
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