वैज्ञानिक बताते हैं कि यदि प्रसन्न, चिंता मुक्त और प्रफुल्ल रहना चाहते हैं तो भूलना सीखें। व्यर्थ की बातें दिमाग से बाहर फैंक दें अच्छी लाभदायक बातें दिमाग में रखें तो कुछ हद तक चिंता, टैंशन से निजात पायी जा सकती है। कुछ सूत्र याद रखें-
- चिंता एक प्रकार की कायरता है- जो किसी भी परिस्थिति की सम्भावना के काल्पनिक डर के कारण अकारण ही पैदा हो जाती है और हमें विचलित कर देती है। चिंताग्रस्त मानसिक अवस्था लेकर सोने से चैन की नींद कोसों दूर भाग जाती है।
- हम प्रकृति के विरुध्द नहीं जा सकते-जो होता है उसे होने दें- उसके सहभागी बनें और समभाव रहें! हम चिंता करके किसी भी परिस्थिति को रोक या बदल नहीं सकते। आज की आज और कल की कल देखेंगे, की आदत बनाएं।
- अक्सर हम कल्पनाओं के कारण चिंतित हो जाते हैं। बच्चा बाहर से घर आने में लेट हो जाए तो हम वो अनजानी अनहोनी कल्पनाएं करने लगते हैं जो कभी सम्भव नहीं हो सकती। लड़की कालेज से घर में आने में देरी कर दें तो मन में उल्टी सीधी भावनाएं जागृत होने लगती हैं जिससे मानसिक कुण्ठा, ग्लानि चिंता-डिप्रेशन होने लगता है। इससे बचना चाहिए। बच्चों को कहा जाए कि यदि कहीं कारणवश देर हो जाए तो फोन या मोबाइल पर घर में इन्फार्म कर दें।
- अक्सर जिस काम की फिक्र होती है बार-बार उसी बात का जिक्र किया जाता है। चिंता ऐसी भट्ठी है जो जीवित को जलाती है जबकि चिंता मृत्यु उपरान्त जलाती है। चिंता दहति निर्जीव को चिंता जीव समेत। अक्सर चिंता फिक्र में अवसाद (डिप्रेशन) हो जाता है। व्यक्ति सूख कर कांटा हो जाता है। हमें यह जान लेना चाहिए कि यदि चिंता का इलाज है तो चिंता क्यों करें। यदि ला-इलाज है तो चिंता क्यों करें। जिसका कोई इलाज ही नहीं- उसे सहन और वहन करना पड़ता है- मुश्किल बात यह है कि हमारी सबसे बड़ी मुसीबतें वे हैं जो हम पर कभी आती ही नहीं। यह बात जान लेनी चाहिए कि जब तक पुल रास्ते में न आए तब तक उसे पार करने की चिंता नहीं करनी चाहिए- जब तक हमें कष्ट नहीं आता तब तक कष्ट को भी नष्ट नहीं देना चाहिए।
- कई लोग बहुत छोटी-छोटी बातों को लेकर चिंतित हो उठते हैं। राई का पहाड़ तो सब बना लेते हैं मजा तो तब है जब आप पहाड़ की राई बना डालें। सदा आशावादी बनना चाहिए- निराशावादी विचार हमें चिंताग्रस्त कर देते हैं। जैसे को तैसा करके परेशानियों में वृध्दि न करें। उसे क्षमा करके अपने आप को भी चिंता मुक्त करने की क्षमता बनाएं।
- बीती ताहि बिसारिये, आगे की सुध ले। आज की परिधि में रहें- कल की बात पुरानी, छोड़ों कल का बातें, यही जीवन का नियम है।
- हर रोज एक नयी जिन्दगी की शुरुआत करनी चाहिए- प्रतिदिन ऐसे जिएं की आज ही जीना है। पूरे दिन का सुन्दर और अच्छा कार्यक्रम बनाये। किसी सम्भावित परिस्थिति के लिए अपने आपको पूर्णतः तैयार रखें। दो-तीन दिन में जो होना होता है, हो ही जाता है। उसके बाद जीवन यथावत चलने लगता है। अपनी पूरी श्रध्दा से अच्छे से अच्छा कार्य करें। यह कभी हो नहीं सकता कि सद्कर्म का फल कड़वा हो, मीठा होगा।
- चिन्ता मुक्त जीना सचमुच एक कला है। जीने का आकांक्षा एवं उत्कण्ठा है, जो चिन्ताओं को अपने मस्तिष्क से दूर रखता है वह अवश्य ही दीर्घजीवी होता है। वह अपने शरीर का स्वतः काया कल्प कर लेता है। ईश्वर ने हमें चिंता मुक्त जीवन जीने के लिए भेजा है। वैसे ही जिएं।
अच्छा लगा. आपका ब्लॉग यहाँ जोड़ा गया है कृपया देखें http://rupaantar.blogspot.in/
ReplyDeleteबढ़िया कसावदार सहज सरल मुहावरे दार लेखन के लिए बधाई .बहुत अच्छी पोस्ट लगी .शुक्रिया ज़नाब का इस पोस्ट के लिए .
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