देखने में आया है कि चिंता में डूबा व्यक्ति इससे उबर नहीं पाता और न जाने क्या-क्या बीमारियां उसे घेर लेती हैं। हर बीमारी का इलाज है लेकिन 'चिंता' इसका कोई इलाज नहीं। जो व्यक्ति इसे पाल लेता है, वह खुद ही इससे उबर सकता है। किसी के समझाने से वह नहीं समझ पाता। हमारे अवचेतन मन में कुछ डर,भय, चिंता जन्म लेती है, जो पनपकर हमारे शरीर की ऊर्जा को नष्ट करती हैं। फिर हमें धीरे-धीरे अंदर से खोखला करती है। फिर एक दिन ऐसा आता है कि बाहरी बीमारी या मुसीबत हमें घेर लेती है। जो कि ठीक होने का नाम नहीं लेती है। इसलिए हमें खुश रहकर चिंता मुक्त रहना चाहिए। चिंता से डिप्रेशन आता है और डिप्रेशन वाले व्यक्ति को निम्न तकलीफों का सामना करना पड़ता है।
* वह अकेलापन महसूस करता है या फिर शुरू में अकेला रहना चाहता है।
* छोटी-छोटी बात पर रोना , झगड़ना या चिंतित हो जाना।
* शरीर दुबला होता जाना।
* खाना कम हो जाना।
* शरीर की पाचन शक्ति कमजोर हो जाना। शरीर कमजोर होना। शरीर में दर्द।
* डॉक्टरों के पास जाना पर उन्हें पता न चलना।
* अपने बारे में खुलकर बात न करना।
* बेवजह किसी बात का भय, घर वाले या सगे-संबंधी भी अच्छे न लगे।
* बेवजह रोना-धोना, चिल्लाना।
* अकेले रहने पर डर या अपने पर से भरोसा खोना।
* अपने काम के बारे में ऐसा लगना मैं नहीं कर सकता। ताकत खत्म होती नजर आना।
* कोई भयंकर बीमारी हो जाने का डर।
* ऐसे व्यक्ति को डिप्रेशन से मुक्त कराना बड़ा मुश्किल कार्य है पर उसके परिवार के सदस्य मिलकर इसे दूर कर सकते हैं।
* मरीज को अकेला नहीं छोड़ें।
* उससे बातचीत करते रहें, उसे सुबह-शाम टहलने ले जायें।
* डॉक्टर से सलाह लेते हुए कुछ न कुछ छुपाये।
* सिर, शरीर की मालिश करें।
* बादाम, रोगन, देशी घी सिर में डालें और मालिश करने के बाद आराम करने को कहें।
* बाहर घूमने ले जायें। मन पसंद संगीत सुनायें।
* जो काम मरीज को अच्छा लगे धीरे-धीरे वहीं करें।
* अगर मरीज का कोई शौक है तो उसे पूरा करने दें। संसार को सुंदर मानकर आनंद लें।
* व्यक्ति को अपना कार्य खुद करने दें। बागवानी करें। कुदरत को देखें।
* उसे संगीत, फिल्मों या सजावट का कुछ भी शौक हो उसे करने दें।
* मरीज कुछ समय निकालकर संगीत सुनें एवं नाच सकते हों तो नाचें, दिल खोलकर बंद कमरे में नृत्य करें।
* अपने को व्यक्ति खुद समझा सकता है। दूसरा व्यक्ति नहीं। व्यक्ति के कमरे में अच्छे पोस्टर, अच्छी बातें लिखकर टांगे।
* भगवान का नाम लें, कीर्तन करें। मंदिर में जाकर बैठें, प्रार्थना करें।
* स्वच्छ एवं पौष्टिक भोजन नियमित करें। रैकी, एरोबिक्स, ध्यान करें। हर क्षण को जियें।
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