तनाव एक ऐसा धुन है जो बच्चों को भी नहीं छोड़ता। वे भी उसकी चपेट में अनजाने में आ जाते हैं। पहले तो 10 साल तक के बच्चे मस्त खेलते कूदते रहते थे, अपने बचपन का पूरा आनन्द उठाते थे पर आज के युग में बच्चा दो वर्ष का होता है तो माता-पिता उन्हें हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में रोजमर्रा में प्रयोग होने वाले शब्दों का उच्चारण सिखाना शुरू कर देते हैं। बच्चा उसी उम्र से ही तनाव में आना शुरू हो जाता है।
उसके बाद स्कूल जाना, वहां अनुशासन में रहना, कई मित्रों के साथ उठना बैठना व रंगों की पहचान सीखना शुरू कर देता है। न आने पर उसे यह भय सताता है कि मुझे मार या डांट न पड़ जाये। उस तनाव से बहुत बार बच्चा कनफ्यूज हो जाता है और भूल जाता है।
माता-पिता को चाहिये कि बच्चा यदि थका थका सहमा रहे या बार-बार सिरदर्द, पेटदर्द की शिकायत करे तो उसे आवश्यकता है प्यार की और उसके साथ अच्छा समय बिताने की। बच्चे में कुछ ऐसे लक्षण दिखाई दें तो माता-पिता को उनकी तह तक जाना चाहिये और वातावरण को बोझिल न बना कर हल्का और खुशनुमा बनाने का प्रयास करना चाहिये। ध्यान रखें कि जब कभी निम्नलिखित लक्षणों में से कुछ लक्षण छोटे बच्चों में दिखाई दें तो हो सकता है कि बच्चा कुछ कारणों से तनावग्रस्त हो।
. थका थका रहना।
. जल्दी जल्दी बीमार पड़ना।
. चिड़चिड़ा बन छोटी-छोटी बात पर रोते रहना।
. अक्सर सिरदर्द और पेटदर्द की शिकायत करना।
. कम नींद लेना।
. भूख अधिक या कम लगना।
. बेचैन रहना, ध्यान का न लगना।
. स्कूल जाने में आनाकानी करना।
. खाने में नखरे करना और खाने के बाद उल्टी कर देना।
. नाखून चबाना, बात बात पर झल्लाना।
. दूसरे बच्चों और परिवार के लोगों के साथ मिक्स अप न होना।
. अपने खिलौनों को दूसरे के साथ मिलकर न खेलना या स्वयं भी उनसे न खेलना।
. दूसरों के सामने अधिक तंग करना या दूसरों से बात न करने देना।
. बहुत छोटा बच्चा बनकर व्यवहार करना।
ऐसा महसूस होने पर बच्चे पर विशेष ध्यान देना चाहिये और बाल रोग विशेषज्ञ से मिलकर परामर्श लें। माता-पिता को ऐसे में घर के वातावरण को खुशनुमा बनाना चाहिये और बच्चे से बैठकर खेल-खेल में उसके तनाव के बारे में जानकारी लेनी चाहिये। यदि किसी प्रकार का डर बच्चे में हो तो उसे दूर करने का पूरा प्रयास करना चाहिये। माता-पिता को अपना तनाव बच्चों के सामने प्रदर्शित नहीं करना चाहिये। बच्चे को उचित आहार दें और उचित आराम का ध्यान रखें। कुछ समय बच्चों के साथ बच्चे बनकर खेलें। अन्य बच्चों को बुलाकर उनकी दोस्ती करवाएं और खाने तथा खेलने की चीजों को मिल बांट कर खाना व खेलना सिखाएं।
बच्चों की जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करें। उन्हें एकदम टोक कर चुप न करवायें। बच्चों को खाली समय में अपनी इच्छा से खेलने दें या एकआध टी.वी. सीरियल देखने दें पर ध्यान रखते रहें कि खाली समय में बच्चा कुछ गलत आदत तो नहीं सीख रहा। मात्र नजर रखें, बच्चों पर हावी न हों।
असफलता का भय बच्चों के मन में न उपजने दें। बच्चों को सकारात्मक सोच दें ताकि बच्चे के मानसिक विकास पर कोई बुरा प्रभाव न पड़े।
छोटे बहन-भाइयों के प्रति उनमें प्यार उत्पन्न करवाएं और जिम्मेदारी की भावना जागृत करें। बड़े भाइयों के प्रति सम्मान करना सिखाएं। बच्चों पर अधिक दबाव न डालें, न ही समयबध्द कार्यक्रम में उन्हें बांधें। खाली समय में आउटडोर गेम्स के प्रति बच्चों को उत्साहित करें। टी.वी. कम्प्यूटर पर कंट्रोल रखें नहीं तो बच्चे घरघुस्सु बन कर रह जाते हैं। दूसरों के बीच तालमेल बनाना सिखाएं। इस प्रकार माता-पिता बच्चों के तनाव को दूर करने में सहायता कर सकते हैं।